Tuesday, May 29, 2018

----- || नई स्वतंत्रता || -----

----- || नई स्वतंत्रता || -----

हव्य वाहावाहवि नई स्वतंत्रता लिए..,
ज्वाल दो बाल दो सौभाग्य के नए दीये..,

हवन बना ह्रदय भवन धूम लोहिता गगन..,
क्रोध है विरोध है तो क्यूँ हो होठों को सीए..,

 रोम रोम व्याकुलित हो प्राण प्राण प्रज्वलित
 दाह हो प्रदाह हो आह्वान की हो लौ लिये..,

आहार हो विहार हो आहा ! आहार्य वेश हो..,
क्रांति है विक्रांति है तो क्यूँ हलाहल पियें.....

         हव्य = आहुति , बलिदान
वाहावाहवि = हाथो-हाथ

'एक पुरानी रचना'



Thursday, May 24, 2018

----- || राग-रंग 2 || -----


----- || रागललित || -----

ख़ुदा की ये दुन्या खुदा की ये राहें,
हरेक उफ़ तलक हों रहम की निगाहें..,

वो सतहे पे हो याके बह्रे-तबक़ पे,
जो क़दमों तले हो सुनो उसकी आहें..,

ख़ुदा-बंद का ही है ये काऱखाना,
हो मासूमो-महरूब के हक़ में पनाहें..,

दयानत से उठे हाथ दुआ के लिए,
के हम दरियादिल हों गाहे-बेगाहे.....

बह्रे-तबक़ = समुद्र की तलहटी
मासूम = निर्दोष 
महरूब = मारा गया, घायल 
ख़ुदा का कारख़ान = जगत का प्रपंच 

Wednesday, May 23, 2018

----- || राग-रंग 1 || -----

----- || रागललित || -----

भरी भोर में बड़े मुँह अँधेरे, 
हुए फिर से रीते रैनी-बसेरे.., 

चिड़ियों को पानी, कनका न तिनका, 
उड़े भूखे प्यासे पंखि-पखेरे..,

हुवे दाता ग्यानी बड़ा नाम जिनका, 
न देवें कसोरे न मूठि बखेरे.., 

भरी दुइ पहरी फिरें ये नगरी-नगरी, 
ढली साँझ को भी फिरे ये न फेरे.., 

न ये पिंजड़े के न पिंजड़ा ही इनका,
ये भगवान के न तेरे न मेरे.....