रवि/सोम ०१/०२ सितम्बर, २ ० १ ३
मति सरनइ गवनइ अंतरिका । भइ तनमइ ले तरंग तरिका ॥
मति सरनइ गवनइ अंतरिका । भइ तनमइ ले तरंग तरिका ॥
चरि घरि कोमलि चरन धरिते । प्रियबर के मुख बचन मुखरिते ॥
निज मति किए पुनि पुरुख बढ़ाई । धन सम्पद बिनु सुत न सुहाई ॥
सुत लालस लख लोचन लाहे । होहहि भाल जातक जन्माहे ॥
सोहनि सुतिका एक घर आहीं । भए ग्लानि मोरे सुत नाहीं ॥
दुःख सुख निज पिय कहत सुनाईं । सुनत बधू मुख मौन धराईं ॥
कछु प्रियतम कहि कछु बहिनाई । कछु पुर प्रिय जन कछु ससुराईं ॥
जाए समुदाए सबहि समिझाएँ । ते मत बधु के मति गति चराए ॥
तरस बरस दस घर बर भाई । ते पर जात जनी भोजाईं ॥
पुनि लघु मन जनिमन तरसे । लाग लगन बे भए दस बरसे ॥
भइ बधु गर्भन परिखन राजी । कनिआ भ्रुन भै पतन समाजी ॥
ते उदंत जब करनन पाईं । आए धाए बधु के लघु भाईं ॥
कहत बचन करि कंठन भारी। गर्भ धरि तो पत काहु कारीं ॥
बोल बरन बार याचन घारे । सुनौ कठिन कर बचन हमारे ॥
गर्भ धरें तौ पालें पोषें । मास पूरतन पंथ जोखें ॥
जात जने रहि तुहरे ठौरे । जाता धारहु मोरएँ झोरे ॥
श्रुत बधु बर अरु बोलएँ भाईं । तेइ बखत कछु कही न पाईं ॥
भयउ बात कह भाए बहोरे। बहुरि बारात पर बखतएँ थोरे ॥
दिए जे सुभ संदेस सुनाई । गर्भ धान किए लघु भौजाईं ॥
तरस बरस दस घर बर भाई । ते पर जात जनी भोजाईं ॥
पुनि लघु मन जनिमन तरसे । लाग लगन बे भए दस बरसे ॥
भइ बधु गर्भन परिखन राजी । कनिआ भ्रुन भै पतन समाजी ॥
ते उदंत जब करनन पाईं । आए धाए बधु के लघु भाईं ॥
कहत बचन करि कंठन भारी। गर्भ धरि तो पत काहु कारीं ॥
बोल बरन बार याचन घारे । सुनौ कठिन कर बचन हमारे ॥
गर्भ धरें तौ पालें पोषें । मास पूरतन पंथ जोखें ॥
जात जने रहि तुहरे ठौरे । जाता धारहु मोरएँ झोरे ॥
श्रुत बधु बर अरु बोलएँ भाईं । तेइ बखत कछु कही न पाईं ॥
भयउ बात कह भाए बहोरे। बहुरि बारात पर बखतएँ थोरे ॥
दिए जे सुभ संदेस सुनाई । गर्भ धान किए लघु भौजाईं ॥
तरनि सरनि पथ पाछिन छोरे । जब पिय धर कंधन झकझोरे ॥
निर्झरि नीर झर झलके , हृदय उपल नग भीर ।
हरिएँ हर हलके हलके , ढलके धीरहि धीर ॥
तेइ बखत जुगल दम्पति, दरसै नागन नाग ।
जेइ कर कुकरम कारन, भयउ जगत हत भाग ॥
मंगलवार, ०३ सितम्बर, २ ० १ ३
नगर बीथि बट हाट बिहारत । गवनु चरनु बहि बेगिन चारत ॥
ऐंठत पैठत बैदु निकाई । सकल अंग भए बैठ बिठाईं ॥
संधि दोष भल कुसल संधाए । ऊरु पटल नउ पाट बंधाए ॥
इस बैदक प्रियबर पद निरखें । उत एक बधु के गर्भन परखें ॥
परखन पर कह तनि सकुचाईं । दै सूचन बधु भै कनियाई ॥
अयन नयन पर पलक बिनीते । बहुरि चरन पथ रीतैं रीते ॥
पैठ पिय पाहिं दी संदेसे । पिय मुख चिंतन धरि लउ लेसे ॥
वधु के मति एहि सोच धराईं । जे भ्रुन हट मम हाथ लिखाईं ॥
मोह तमोगुन पिय धरे, नयन तनय अभिलाख ।
रह चितबत बहियार बरे, उर बादर जर पाख ॥
बुधवार, ०४ सितम्बर, २ ० १३
ते बैदक पुर दु दिवस होरे। धरे पटिक नउ चरन बहोरे ॥
संग ली अरु एक संदेसे । को बिधि जे भल रहहि न लउ लेसे ॥
जेहि भयउ भाव बंधन फाँसे । सुरत तरप जब निकसै साँसे ॥
करे दोष जे दूषन कारी । रहे जिउति लग उर पर भारी ॥
दोष भाज धरि जेतक भावा । कारित तेतक कार प्रभावा ॥
होत जितै दूजन अपकारी । उतै दंड कर करता धारी ॥
कहे लेख लिख मनु भगवाना । भ्रून हतन दोष महाना ॥
भ्रून हतक के दरसन कारी । अन कन भोजन भए अनहारी ॥
दोष सार गुण जगत समेटे । बयस कोस दुइ चारत भेंटे ॥
गुण दोष जेइ चितबन जाने । तेइ जन जगत हंस समाने ॥
कहत आखर जननी इत, करत मंतु मत मंथ ।
बोहत बाहि बाहनि उत भँवरत भाँवर पंथ ।।
गुरूवार, ०५ सितम्बर, २ ० १ ३
धरा बिंदु बिध फेरी फेरे । दिनकर दिन दुइ चंदु सकेरे ॥
गर्भ बयस भै दिन सत कोरी । करत पतन तिन बधु कर जोरी ॥
पुरुख हृदय भए काठ कठोरे । दोष करत पर हिले न थोरे ॥
वासे जनिमन जनन अभावा । रहित माइ के ममत अभावा ॥
जनि जनिमन धर पीर बिहाई । जनम जगत जग जननि कहाई ॥
नारि ह्रदय भए सिन्धु अगाधे । वाके गाहन कोउ न राधे ॥
पाए पीर जन दोनौ माहीं । कारि पतन चह जनमन चाही ॥
गर्भ पतन जब भवन प्रबेसे । ते ममता गवने को देसे ॥
जग मैं जनक रखक जगत, पाल कहत परिभाख ।
जब निपतितात्मन , जगत भखक अवलाख ॥
शुक्रवार,०६ अगस्त, २ ० १ ३
कार पतन बधू बहोरि धामा । दुइ चारि दिवस केरि बिश्रामा ॥
धुत कारत मन देइ दुहाई । लगे जिअत जी बहु कठनाई ॥
जिते जी जेइ भाव सकेरे । कार कलेवरात्मन केरे ॥
आए काल जब जन्म बिहाई । भाव नुरूप जिउ जोनि पाई ॥
सुभ असुभ जेइ कारज करिते । कारनी कारि जग हित अहिते ॥
को जग पतिते को उद्धारे । चह निज चह पर रूचित कारे ॥
कारत जस कारज कर जोरे । बोए बीज जस तस फल तोरे ॥
पर जेइ चरन सदपथ चारिहिं । भलइ करत जग करम सुधारिहि ॥
काल कलुख कृत करन सँवारत । अगत जगत श्री बर्धन कारत ॥
तिन जन के किए कारि न निंदा । कहि गए बुध महा रिसि मुनिदा ॥
काम क्रोध मद अरु लोभ, भान ज्ञान के ढाँक ।
चारि ओहार अवतरे, दैं दौनौ मुख हाँक ॥
शनिवार,०७ सितम्बर, २ ० १ ३
पाटन पातक उर पर घारे । जोगत पिय बधु लघु धिय धारे ॥
नाज साज लै मूल उधारी । जस तस कर घर गृहस सँभारी ॥
दिवस किरन रयनिहि ताम कोरे । बय सन श्रमधन केरि अँकोरे ॥
इत कर धन उत बय परिहाई । भरे मूठि मह रज के नाईं ॥
चरइ गृहस अब लग निर्बाधे । जोग जोख गिन साधन साधे ॥
बिषय राग भै बहस उपाधी । समरथ भंजन साध समाधी ॥
होए बुद्धि जब निज सनमाना । दुआरि अखि हिन् भवन समाना ॥
काम क्रोध मद लोभ लुभाईं । लहत भवन ते रहत दुराईं ॥
ससुर भसुर पितु बहिनै भाईं । तन मन धन ते रहहि सहाईं ॥
दुजन देइ घटे न धन घाटे । आपण धन ते पूरत पाटे ॥
कभु गति अधिक कभु अनधिक, साँस जस हृदय जोरि ।
अस रहि चरत गृहस रथ, बधु कर कासित डोरि ॥
रविवार, ०८ सितम्बर, २ ० १ ३
बहोरि बैदक के मति मंते । कारत शयन श्राम पर्यंते ॥
संधि बंध पटि केरि मोचिते । किए प्रियतम श्रम चरन चारिते ॥
धरावतर जब चरनन चिन्हे । चाप चरन चर अंतर किन्हें ।
धरा तरी पल थीर न पाईं । भयउ दुबल ठारन कठिनाई ॥
उरस भवन भित भरत उसाँसे । पलक नवान मुख धरत निरासे ॥
मौलि मूर्धन जल कन कासे । अबल अचल किए सयन निवासे ॥
बहियार बरबस लेइ उठाई । धारत कर तर अधर ठराई ॥
भय कर धरकी तुर गत छाँती । ठार बने ना कहु को भाँती ॥
ते अवसर कोमलि कारि, बधु मुख बोल उचारि ।
कारत उर भय हिन कारि, चरु तनि धीरजु धारि ॥
सोमवार,०९ सितम्बर, २ ० १ ३
ऐसेउ सिरत दिन दुइ चारी । हरियर पिय पादंतर धारी ॥
पुनि बधु लिए पिय घर के बारी । चराइ चरनन करत सँभारी ॥
चरन प्रदेसन देय बिधाना । देइ उपकरन बैदक नाना ॥
ते साधन रहि बहुस सहाई । धरातर धुर चरन के नाईं ॥
बार बधूटी करतल कासे । बारम्बाररे किए अभ्यासे ॥
लागे चारन थोरहि थोरे । घर भीतर के उपबन ठौरे ॥
तेहि पर पद घर बहिर सिधाए । बहियर हरिअर कर धर चराए ॥
गवनु चरन जब पार दुआरे । तन के सह मन चरत बिहारे ॥
संधि बंध सह चरनन, चितबहु मुकुती पाए ॥
घर आँगन पंथ उपबन, सरयु सरन सुख दाए ।
मंगलवार,१० सितम्बर,२०१३
सनै सनै उपकरन परिहाए । आपन आप चरत लैंगराए ॥
आहि बार एक मन संदेहे । भंग पद कभु लघुत न लहेहे ॥
बहोरि छिनु बिनु एकहु बिआही । गवने डरपत भिषकन पाहीं ॥
भिषक दोउ पद मापत जोगे । कहत अस्थि भाल भाँति सँजोगे ॥
दोनौ पद एक रुप सम अंके । रहु एक चेतस परिहरु संके ॥
तब प्रियतम के नयन झरोखे । तिलछ करत दम दरसे तोखे ॥
लै पुनि पिय उछ बास बिरामा । होरत दुछ्न फिरे जनि धामा ॥
पावएँ जब चारन संदेसे । पुर प्रिय जन गृह चरन प्रबेसे ॥
बैस अवाईं दरसत पिय,बूझे पद के पीर ।
चरत होत हरवा हरकै, कहि पिय जी के हीर ॥
बुधवार, ११ सितम्बर, २ ० १ ३
भली भाँति पद चरत बिहारे । रहहि बिषय ते अचरज कारे ॥
करक जुगे पद भंजन कारे । बाहि रुधिरु बिनु चीरत फारे ॥
सुधी भिषक भाल जे रहि थाई । जेइ परन पुर बैदु बुझाईं ॥
तेइ कोउ बिधि थाह न पाईं । पिय के भाल उपचारन ताईं ॥
भिषक बदन ते पहिलै कथने । जे पद भंजन थंभन जतनै ॥
चीर फाड़ कर दंडक जोटें । नहि त रह जहि दुज चरन ते छोटे ॥
लेइ सकल पत चित्तर अंतर । पाठ पठन हुँत दूजन हितकर ॥
कहत ज्ञानि गुन बैदु निसंके । तव बिराम पर बर एक अंके ॥
तत छन बधु बोली मधुर, गवनत रहति पिरान ।
जे न छाड़िते मुख धनुर,कराकस बानी के बान ।।
गुरूवार, १२ सितम्बर,२०१३
छुटत प्रीतम जवल कन छोरे । तिन तनु अगमनु अगनु अगौरें ॥
तुहरे कारन अरु अँधियाईं । बन एकहि एक न देइ दिखाईं ॥
गोल मोल भै बोल अगोही । मुहूरत मूँढ़ मारन टोही ॥
अगाउनी अगियन बैताला । अगोचर करक सूलक भाला ॥
भाव अगूढ़ अगुसर गूठे । तनिक साँच तौ भै तनि झूठे ॥
पर प्रिय आगति खरे अगारीं । निपुनत बधु के किए रखबारी ॥
आगति दरस पिय भृकुटि काछे । आउ भाउ भै आगिन पाछे ॥
श्रवनत दंपत मुख मधु भासे । बैसे पाहुन लागन हाँसे ॥
हंस नाद हँसि धुनी जगाई । पावस पहिलै पय पद नाईं ॥
हँस पुहुप दाम पख पद धारे । रचियन भंजन भए प्रस्तारे ॥
भंजित शेखर हस्त मुकुलिते । प्रिया पिय चरनन कारित रिते ॥
सिरु धरत चरन रमन धूरि कन, फूरि फ़ूरि रसनत रसनाईं ।
रयन कनक कन कर आभूषन, रल्ल मल्ल रवकन रवनाईं॥
रह रह सन रहसन सन कन कन, कर रंजन कंगन खनकाईं ॥
रहि रहरूढ़भाव ते अभरन, रर रर करि रर्रत ररिहाईं ॥
धनवन देव नाथ धनुर, सकल रंग जुग बास ।
दम्पतहु सन करुर मधुर,धरे अनी अनुप्रास ॥
शुक्रवार, १ ३ सितम्बर, २ ० १ ३
एक तौ चारत पीर धराईं । बिनु सक बल पिय चरि लँगराईं ॥
ता पर चिंतन धरें पराईं । को औरन को औरन नाईं ॥
पहलै चिंतन पेट लपेटे । दूजन भइ लपेट के पेटे ॥
तिजन रही कर्पर के छाईं । पुनि पटिया के झगर लराई ॥
गेहनी करतब गह सँभारे । धन जुगबन सिरु रहहि न भारे ।।
जेइ भार गेही सिरु धारे । गह जिन्ह के जोह जुहारे ॥
सुधी बुधी लिख लिख उच्छारे । पोषत जग जन पालन हारे ॥
नयन पाल जस निमित निहारे । लिखित कबित सन कहित हुँकारे ॥
रज रज रचइत बहुस प्रकारे । दाता दिए जग बहु उदगारे ।।
प्रानि प्रनिधानि करम अधारे । हेरत निज जीवन उद्धारें ।।
उद्कार्थी हुँत जस उदगारे । कार कठिन कर हेर निकारे ॥
कनार्थी तस कर्म दुआरे । हेर हेर कर हेरन हारे ॥
नारी चिंतन कछु और, पौरूख चिंतन और ।
बासे दोउ एक निबास, जन्मने एकै ठौर ॥
शनिवार, १४ सितम्बर, २ ० १ ३
एक दिन प्रीतम मन का आई । गवनै जनि घर सन बर भाई ॥
चरत तुरतइ ऐसेउ सिधाएँ । चरे बिहंग जस पंख निकसाएँ ॥
भाव बिहल बच्छल बिसराईं । जनिजा भुर मन जनि सुरताईं ॥
गेह गृहस अस गे छुटकारे । फाँस कोउ जस कंठन घारे ॥
चौपत पथ खन बिरहन घेरे । बहियर भइ घर अकै अकेरे ॥
बोले मन बोली न घनेरे । बढ़ एक तै एक भूरि बड़ेरे ॥
देइ उतरु भर भाव रुआँसे । तुम्हरे उपर रोएँ कि हाँसे ॥
प्रियाबर मुख छबि मंकुर राखे । करहु घात गहनए तिन पाखे ॥
कह बचन पुनि मन मानी होए । नयनाकर अब कितौ जल जोएँ ॥
कमल कुसुम कल कुमुद प्रफूरे । रयन भाव रति दिवस न फ़ूरे ॥
श्रवन मन मुख मधुर वचन, दे रद छादन दान ।
पेयुख मयूख वधु वदन, भयउ कान्त मलान ॥
रविवार, १५ सितम्बर, २ ० १ ३
लाग लगइ के लगन लगाई । राग जगइ जर नीर बहाई ॥
सदरी रैनी जग जग बिताइ । सेज सजन बिनु अंग न सुहाइ ॥
बैर करते हुवे झगड़ा लगा दिया फिर अनुराग जागृत कर पश्चाताप करते हुवे आँसू बह रहे हैं ॥ पूरी रात जाग जाग कर बीत रही है और प्रियतम के विरह में सय्या सुहावनी प्रतीत नहीं होती ॥
दिरिस द्वीप करपूर घारे । द्रवीभूत द्रव रतनागारे ॥
रतन जोती रे रय रतनाइ। ज्वाल किरन जग लग उजियाइ॥
पलक पदुम पिय पंथ निहारे । नीर नुपूर रुर रूसत हारे ॥
सैन सदन सन केर सकलाइ । सेष रहि तिन्ह रैन हेराइ ॥
रमनै रवनत रल रमझोरे । बधु बिरहन दुख जान न भोरे ॥
भविते बधु भइ भूर गहनाइ । ऐसेउ वचन काहू निकसाइ ॥
सुमिरत पिय लै बालक कोरे । बिह्बल उर भरि भाउ विभोरे ॥
जर जर काजर नैन बहाई । हाय ढरत सन रैनि सिराई ॥
बधु चितबन सुरत ना बन, फिरत फेरी प्रभात ।
तरुबर तूर फूर भरे, बिटप पंथ नउ पात ॥
तेइ बखत जुगल दम्पति, दरसै नागन नाग ।
जेइ कर कुकरम कारन, भयउ जगत हत भाग ॥
मंगलवार, ०३ सितम्बर, २ ० १ ३
नगर बीथि बट हाट बिहारत । गवनु चरनु बहि बेगिन चारत ॥
ऐंठत पैठत बैदु निकाई । सकल अंग भए बैठ बिठाईं ॥
संधि दोष भल कुसल संधाए । ऊरु पटल नउ पाट बंधाए ॥
इस बैदक प्रियबर पद निरखें । उत एक बधु के गर्भन परखें ॥
परखन पर कह तनि सकुचाईं । दै सूचन बधु भै कनियाई ॥
अयन नयन पर पलक बिनीते । बहुरि चरन पथ रीतैं रीते ॥
पैठ पिय पाहिं दी संदेसे । पिय मुख चिंतन धरि लउ लेसे ॥
वधु के मति एहि सोच धराईं । जे भ्रुन हट मम हाथ लिखाईं ॥
मोह तमोगुन पिय धरे, नयन तनय अभिलाख ।
रह चितबत बहियार बरे, उर बादर जर पाख ॥
बुधवार, ०४ सितम्बर, २ ० १३
ते बैदक पुर दु दिवस होरे। धरे पटिक नउ चरन बहोरे ॥
संग ली अरु एक संदेसे । को बिधि जे भल रहहि न लउ लेसे ॥
जेहि भयउ भाव बंधन फाँसे । सुरत तरप जब निकसै साँसे ॥
करे दोष जे दूषन कारी । रहे जिउति लग उर पर भारी ॥
दोष भाज धरि जेतक भावा । कारित तेतक कार प्रभावा ॥
होत जितै दूजन अपकारी । उतै दंड कर करता धारी ॥
कहे लेख लिख मनु भगवाना । भ्रून हतन दोष महाना ॥
भ्रून हतक के दरसन कारी । अन कन भोजन भए अनहारी ॥
दोष सार गुण जगत समेटे । बयस कोस दुइ चारत भेंटे ॥
गुण दोष जेइ चितबन जाने । तेइ जन जगत हंस समाने ॥
कहत आखर जननी इत, करत मंतु मत मंथ ।
बोहत बाहि बाहनि उत भँवरत भाँवर पंथ ।।
गुरूवार, ०५ सितम्बर, २ ० १ ३
धरा बिंदु बिध फेरी फेरे । दिनकर दिन दुइ चंदु सकेरे ॥
गर्भ बयस भै दिन सत कोरी । करत पतन तिन बधु कर जोरी ॥
पुरुख हृदय भए काठ कठोरे । दोष करत पर हिले न थोरे ॥
वासे जनिमन जनन अभावा । रहित माइ के ममत अभावा ॥
जनि जनिमन धर पीर बिहाई । जनम जगत जग जननि कहाई ॥
नारि ह्रदय भए सिन्धु अगाधे । वाके गाहन कोउ न राधे ॥
पाए पीर जन दोनौ माहीं । कारि पतन चह जनमन चाही ॥
गर्भ पतन जब भवन प्रबेसे । ते ममता गवने को देसे ॥
जग मैं जनक रखक जगत, पाल कहत परिभाख ।
जब निपतितात्मन , जगत भखक अवलाख ॥
शुक्रवार,०६ अगस्त, २ ० १ ३
कार पतन बधू बहोरि धामा । दुइ चारि दिवस केरि बिश्रामा ॥
धुत कारत मन देइ दुहाई । लगे जिअत जी बहु कठनाई ॥
जिते जी जेइ भाव सकेरे । कार कलेवरात्मन केरे ॥
आए काल जब जन्म बिहाई । भाव नुरूप जिउ जोनि पाई ॥
सुभ असुभ जेइ कारज करिते । कारनी कारि जग हित अहिते ॥
को जग पतिते को उद्धारे । चह निज चह पर रूचित कारे ॥
कारत जस कारज कर जोरे । बोए बीज जस तस फल तोरे ॥
पर जेइ चरन सदपथ चारिहिं । भलइ करत जग करम सुधारिहि ॥
काल कलुख कृत करन सँवारत । अगत जगत श्री बर्धन कारत ॥
तिन जन के किए कारि न निंदा । कहि गए बुध महा रिसि मुनिदा ॥
काम क्रोध मद अरु लोभ, भान ज्ञान के ढाँक ।
चारि ओहार अवतरे, दैं दौनौ मुख हाँक ॥
शनिवार,०७ सितम्बर, २ ० १ ३
पाटन पातक उर पर घारे । जोगत पिय बधु लघु धिय धारे ॥
नाज साज लै मूल उधारी । जस तस कर घर गृहस सँभारी ॥
दिवस किरन रयनिहि ताम कोरे । बय सन श्रमधन केरि अँकोरे ॥
इत कर धन उत बय परिहाई । भरे मूठि मह रज के नाईं ॥
चरइ गृहस अब लग निर्बाधे । जोग जोख गिन साधन साधे ॥
बिषय राग भै बहस उपाधी । समरथ भंजन साध समाधी ॥
होए बुद्धि जब निज सनमाना । दुआरि अखि हिन् भवन समाना ॥
काम क्रोध मद लोभ लुभाईं । लहत भवन ते रहत दुराईं ॥
ससुर भसुर पितु बहिनै भाईं । तन मन धन ते रहहि सहाईं ॥
दुजन देइ घटे न धन घाटे । आपण धन ते पूरत पाटे ॥
कभु गति अधिक कभु अनधिक, साँस जस हृदय जोरि ।
अस रहि चरत गृहस रथ, बधु कर कासित डोरि ॥
रविवार, ०८ सितम्बर, २ ० १ ३
बहोरि बैदक के मति मंते । कारत शयन श्राम पर्यंते ॥
संधि बंध पटि केरि मोचिते । किए प्रियतम श्रम चरन चारिते ॥
धरावतर जब चरनन चिन्हे । चाप चरन चर अंतर किन्हें ।
धरा तरी पल थीर न पाईं । भयउ दुबल ठारन कठिनाई ॥
उरस भवन भित भरत उसाँसे । पलक नवान मुख धरत निरासे ॥
मौलि मूर्धन जल कन कासे । अबल अचल किए सयन निवासे ॥
बहियार बरबस लेइ उठाई । धारत कर तर अधर ठराई ॥
भय कर धरकी तुर गत छाँती । ठार बने ना कहु को भाँती ॥
ते अवसर कोमलि कारि, बधु मुख बोल उचारि ।
कारत उर भय हिन कारि, चरु तनि धीरजु धारि ॥
सोमवार,०९ सितम्बर, २ ० १ ३
ऐसेउ सिरत दिन दुइ चारी । हरियर पिय पादंतर धारी ॥
पुनि बधु लिए पिय घर के बारी । चराइ चरनन करत सँभारी ॥
चरन प्रदेसन देय बिधाना । देइ उपकरन बैदक नाना ॥
ते साधन रहि बहुस सहाई । धरातर धुर चरन के नाईं ॥
बार बधूटी करतल कासे । बारम्बाररे किए अभ्यासे ॥
लागे चारन थोरहि थोरे । घर भीतर के उपबन ठौरे ॥
तेहि पर पद घर बहिर सिधाए । बहियर हरिअर कर धर चराए ॥
गवनु चरन जब पार दुआरे । तन के सह मन चरत बिहारे ॥
संधि बंध सह चरनन, चितबहु मुकुती पाए ॥
घर आँगन पंथ उपबन, सरयु सरन सुख दाए ।
मंगलवार,१० सितम्बर,२०१३
सनै सनै उपकरन परिहाए । आपन आप चरत लैंगराए ॥
आहि बार एक मन संदेहे । भंग पद कभु लघुत न लहेहे ॥
बहोरि छिनु बिनु एकहु बिआही । गवने डरपत भिषकन पाहीं ॥
भिषक दोउ पद मापत जोगे । कहत अस्थि भाल भाँति सँजोगे ॥
दोनौ पद एक रुप सम अंके । रहु एक चेतस परिहरु संके ॥
तब प्रियतम के नयन झरोखे । तिलछ करत दम दरसे तोखे ॥
लै पुनि पिय उछ बास बिरामा । होरत दुछ्न फिरे जनि धामा ॥
पावएँ जब चारन संदेसे । पुर प्रिय जन गृह चरन प्रबेसे ॥
बैस अवाईं दरसत पिय,बूझे पद के पीर ।
चरत होत हरवा हरकै, कहि पिय जी के हीर ॥
बुधवार, ११ सितम्बर, २ ० १ ३
भली भाँति पद चरत बिहारे । रहहि बिषय ते अचरज कारे ॥
करक जुगे पद भंजन कारे । बाहि रुधिरु बिनु चीरत फारे ॥
सुधी भिषक भाल जे रहि थाई । जेइ परन पुर बैदु बुझाईं ॥
तेइ कोउ बिधि थाह न पाईं । पिय के भाल उपचारन ताईं ॥
भिषक बदन ते पहिलै कथने । जे पद भंजन थंभन जतनै ॥
चीर फाड़ कर दंडक जोटें । नहि त रह जहि दुज चरन ते छोटे ॥
लेइ सकल पत चित्तर अंतर । पाठ पठन हुँत दूजन हितकर ॥
कहत ज्ञानि गुन बैदु निसंके । तव बिराम पर बर एक अंके ॥
तत छन बधु बोली मधुर, गवनत रहति पिरान ।
जे न छाड़िते मुख धनुर,कराकस बानी के बान ।।
गुरूवार, १२ सितम्बर,२०१३
छुटत प्रीतम जवल कन छोरे । तिन तनु अगमनु अगनु अगौरें ॥
तुहरे कारन अरु अँधियाईं । बन एकहि एक न देइ दिखाईं ॥
गोल मोल भै बोल अगोही । मुहूरत मूँढ़ मारन टोही ॥
अगाउनी अगियन बैताला । अगोचर करक सूलक भाला ॥
भाव अगूढ़ अगुसर गूठे । तनिक साँच तौ भै तनि झूठे ॥
पर प्रिय आगति खरे अगारीं । निपुनत बधु के किए रखबारी ॥
आगति दरस पिय भृकुटि काछे । आउ भाउ भै आगिन पाछे ॥
श्रवनत दंपत मुख मधु भासे । बैसे पाहुन लागन हाँसे ॥
हंस नाद हँसि धुनी जगाई । पावस पहिलै पय पद नाईं ॥
हँस पुहुप दाम पख पद धारे । रचियन भंजन भए प्रस्तारे ॥
भंजित शेखर हस्त मुकुलिते । प्रिया पिय चरनन कारित रिते ॥
सिरु धरत चरन रमन धूरि कन, फूरि फ़ूरि रसनत रसनाईं ।
रयन कनक कन कर आभूषन, रल्ल मल्ल रवकन रवनाईं॥
रह रह सन रहसन सन कन कन, कर रंजन कंगन खनकाईं ॥
रहि रहरूढ़भाव ते अभरन, रर रर करि रर्रत ररिहाईं ॥
धनवन देव नाथ धनुर, सकल रंग जुग बास ।
दम्पतहु सन करुर मधुर,धरे अनी अनुप्रास ॥
शुक्रवार, १ ३ सितम्बर, २ ० १ ३
एक तौ चारत पीर धराईं । बिनु सक बल पिय चरि लँगराईं ॥
ता पर चिंतन धरें पराईं । को औरन को औरन नाईं ॥
पहलै चिंतन पेट लपेटे । दूजन भइ लपेट के पेटे ॥
तिजन रही कर्पर के छाईं । पुनि पटिया के झगर लराई ॥
गेहनी करतब गह सँभारे । धन जुगबन सिरु रहहि न भारे ।।
जेइ भार गेही सिरु धारे । गह जिन्ह के जोह जुहारे ॥
सुधी बुधी लिख लिख उच्छारे । पोषत जग जन पालन हारे ॥
नयन पाल जस निमित निहारे । लिखित कबित सन कहित हुँकारे ॥
रज रज रचइत बहुस प्रकारे । दाता दिए जग बहु उदगारे ।।
प्रानि प्रनिधानि करम अधारे । हेरत निज जीवन उद्धारें ।।
उद्कार्थी हुँत जस उदगारे । कार कठिन कर हेर निकारे ॥
कनार्थी तस कर्म दुआरे । हेर हेर कर हेरन हारे ॥
नारी चिंतन कछु और, पौरूख चिंतन और ।
बासे दोउ एक निबास, जन्मने एकै ठौर ॥
शनिवार, १४ सितम्बर, २ ० १ ३
एक दिन प्रीतम मन का आई । गवनै जनि घर सन बर भाई ॥
चरत तुरतइ ऐसेउ सिधाएँ । चरे बिहंग जस पंख निकसाएँ ॥
भाव बिहल बच्छल बिसराईं । जनिजा भुर मन जनि सुरताईं ॥
गेह गृहस अस गे छुटकारे । फाँस कोउ जस कंठन घारे ॥
चौपत पथ खन बिरहन घेरे । बहियर भइ घर अकै अकेरे ॥
बोले मन बोली न घनेरे । बढ़ एक तै एक भूरि बड़ेरे ॥
देइ उतरु भर भाव रुआँसे । तुम्हरे उपर रोएँ कि हाँसे ॥
प्रियाबर मुख छबि मंकुर राखे । करहु घात गहनए तिन पाखे ॥
कह बचन पुनि मन मानी होए । नयनाकर अब कितौ जल जोएँ ॥
कमल कुसुम कल कुमुद प्रफूरे । रयन भाव रति दिवस न फ़ूरे ॥
श्रवन मन मुख मधुर वचन, दे रद छादन दान ।
पेयुख मयूख वधु वदन, भयउ कान्त मलान ॥
रविवार, १५ सितम्बर, २ ० १ ३
लाग लगइ के लगन लगाई । राग जगइ जर नीर बहाई ॥
सदरी रैनी जग जग बिताइ । सेज सजन बिनु अंग न सुहाइ ॥
बैर करते हुवे झगड़ा लगा दिया फिर अनुराग जागृत कर पश्चाताप करते हुवे आँसू बह रहे हैं ॥ पूरी रात जाग जाग कर बीत रही है और प्रियतम के विरह में सय्या सुहावनी प्रतीत नहीं होती ॥
दिरिस द्वीप करपूर घारे । द्रवीभूत द्रव रतनागारे ॥
रतन जोती रे रय रतनाइ। ज्वाल किरन जग लग उजियाइ॥
पलक पदुम पिय पंथ निहारे । नीर नुपूर रुर रूसत हारे ॥
सैन सदन सन केर सकलाइ । सेष रहि तिन्ह रैन हेराइ ॥
रमनै रवनत रल रमझोरे । बधु बिरहन दुख जान न भोरे ॥
भविते बधु भइ भूर गहनाइ । ऐसेउ वचन काहू निकसाइ ॥
सुमिरत पिय लै बालक कोरे । बिह्बल उर भरि भाउ विभोरे ॥
जर जर काजर नैन बहाई । हाय ढरत सन रैनि सिराई ॥
बधु चितबन सुरत ना बन, फिरत फेरी प्रभात ।
तरुबर तूर फूर भरे, बिटप पंथ नउ पात ॥
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