Thursday, August 1, 2013

----- ॥ सूक्ति के मणि 13॥ -----

देह पतित पद भू पथ पाथर / बेदन बिध करि तन मन थरथर //
तापर हलहर सीतरताई / अस जस करुबर नीम चढ़ाईं //

तबहि दूर एक बाहन देखे / धावत आवत रहि पद रेखे //
ज्यूँ ज्यूँ नियरे हमरे तेई / त्यूँ त्यूँ कासित कर टेई //

जसहीं हम हत दरसन दिन्हें / ढारत बहि एक कूलक किन्हें //
पूछे तुम्ह कौन हो भाई / आह बयस अस रैन बिहाई //

तब सब घटना बिबरन देईं /  कारत आपन परखन तेईं //
रहहि निकट जे तव बहनोई / तेहि जन तासु परिचित होईं //

अरु सब सदजन पर पहिचाने / उठइ हमहि तुर जनपद लानै //

तहवाँ लेइ दूरभास, बहनुइ देइ उदंत /
हमहि कृतार्थ करत ते आए तुर तुरंत //

शुक्रवार, ०२ अगस्त , २ ० १ ३                                                                                         

भावक अरोग गृह ले गवनै / जहँ मो प्रथम उपचार दवनै //
पाहिले पद अंतर छबि तारे / तब एक काचन पतिका सारे //

भंग अंग मग चारन हारउँ / बार बार मैं जननि गुहारउँ//
अकुल बियाकुल भै मन भारी / भगिनी भावक मोहि सँभारी //

आपन  भाँति कहत समुझाईं / अस छतवत तन रहत लहाईं //
सरीर सेल कलेवर कारौ / बिषादु तज तनि धीरज धारौ //

ते बखत तासु बचन सुहाईं / पीर परत मन धीर धराईं //
लावन पुनि जनि नगरि हरुआए / जोगत परखत बाहिन बिसाए //

ले बाहिता बाहनु के, पद मद्धम गति कार /
जामिनी जाम पइसाए, तुर जनि नगरि दुआर //


शनिवार, ०३ अगस्त , २ ० १ ३                                                                                                  

अस प्रियतम उत्तर पुर भौंरे / बरतमान जग अवतर पौरे //
तत पर भए मुखरित मुख मौने / जस पग फेरत बधुटी लौने //

पिय दुर्गत के सकल बखाना / सुनत रहि बधु देवत धियाना //
घटन ऐसेउ बोल बताईं / घटिका जस पिय सों दरसाईं //

ले बहु बरन बचन भर बानी / ते कारन  भए कंठ गिलानी //
कहत पर पिय अधर तिसनाई / तुरत बधु अधर तोइ धराईं //

धुरि पुर पट्टन कारत पारे / पथ पुल कुंजन कूल कठारे //
नहकत घन बन भँवरत थौरे / पहुँचाइ बहि चमक पुर पौरे //

जिन के चिन्ह बैद दाए, जे रहहि जननि बास /
हतक पथिक आए तहँ जहँ, तिनके निरुज निवास //

रविवार, ०४ अगस्त, २ ० १ ३                                                                                                 

तहँवाँ बैसत भए तनि बेरे / रहहि नाड़िया रोगिन घेरे //
देखत निरखत दु चंदु चारी / आगत प्रिय के परखन पारी //

काँपत  नारी धरकत छाँती / हट प्रद पिय जोगत भल भाँती //
प्रथम पुरातन पद चित्र पेखे / पुनि एक नउ अंतर छबि रेखे //

रोगिहि हुँते सयनइ पौढ़ाए / सइत सजन एक सदन पैठाए //
हतपद उँगरि तिर धर टेरे / ऊरु फलक जे भंजन केरे //

कौसल तस ते सिध संधाने / संधि बांध रत पटिक बँधाने //
बहुरि सकल जन भीत बुलाईं / सँधित बँधित पिय चरन दिखाईं //

भंग अंग हर कारत बरनन / अरु बोले अस बचन सुहावन //
चीरन करतन लागहिं नाहीं / ऐसेउ भाल भाँति जग जाहीं //

पर मोरे एक बचन दानहू / भयउ कुसल लग कहहि मानहू //

भसुर भाइहि सहित बधू, लाहत उर उत्कर्ष /
प्रतीत सँदेह भाउ जुग, हर्षित बैद सँदर्ष //

सोमवार, ० ५ अगस्त, २ ० १ ३                                                                                                    

बहोरि बैद कहि एहिहि ठौरे / पंच दस दिवस लग परि होरे //
हमरे निरखन मह भलसाई / जोग परख पद करक जुराईं //

असक कसक अस पटिका कासें  / मानहु पद दैं कारा बासे //
अट्टक पट्टक अस लपटाईं / दंडक जस दंडिका बंधाईं //

कर अंतर पद फेरत केरे / धौली मटिका गृह भित घेरे //
तपत श्रमकन अंतर रिसाईं / कलपन कीट जिमि कुलबुलाईं //

कहि  दंडक जे लै हिंडोले / कोर्ट रोरत इत उत डोले //
तब तव दोनउ चरन बँधाहूँ / दंड अवधि अरु दै बैसाहूँ //

कारत अंजनु भाउ बियंजनु पीर भंगित पाद की /
सार सुरंगन बरनत बरननधीर बदन बिषाद की //
पिय हतभागी रयनइ लागी करत अँधियार नयन /
मध पथ सरसर भल्लक भय कर दै धन बर्जिता सरन //

आह भंगन पाउँ धरे, भन भन करत पियाए /
बैदक अस पट्टक करे, कोउ भाँति न सुहाए //

मंगलवार, ०६ अगस्त, २ ० १ ३                                                                                                         

बितत दिवस भै रतियन कारी / पटिक चरन तन आरत भारी //
बिहान भयउ न रयनी बिहाए/ असन रसाए न देही सुहाए //

जागत पहलइ रैन  बिताई / बर तरपन लिख कही न जाई //
प्रात काल सयनिन्ह सयनाए / नित्य करम पिय तहहि निपटाए //

कहहिं बंधुगन भा बार काजा / नहि त रहिहि हम सल्य समाजा //
पर अजहुँत मन संसइ कारीं  / का ए भाँति पद संधि सहारीं //

पंथ जोग कर बखत लहाहीं / गवने दोनौ बैदक पाहीं //
बैसत सन्मुख तिनके आसन / बोले बरतत बहु अनुसासन //

जे तुम कहु पूछे तनि बाते  / मत अनुरूप निज हित के नाते //
हमरे मति एक संसै लाही / सल्य रहित पद जुग  तौ जाही //

रोगिन संजुग के बचन, संविदित चित साध /
संका संवारत बैद, वादिन अस संवाद //

बुधवार, ०७ अगस्त, २ ० १ ३                                                                                                     

मानख बपुधर बिटप सरूपा/ बाल रूप अँखुआ अनुरूपा //
पोषत तिन सत सार अहारे / बिटप साख जस अस्थि सहारे //

सीध साध कहुँ आँठन गाँठी / अस्थि ऐसेउ जस को लाठी //
ऊरु फलक धरि अस आकारे / घुटरुहु कटि पद संधित सारे //

भंग लकुटि जस तिर्यक ताईं / तव प्रिय पद एहि बिधि भंगाई //
भय दोइ खंड धर दुइ खाँचे / दरसत अस जस को दुइ साँचे //

दोउ खगन कर खचत खचीते / खाँच खचावट जोगि सुधीते //
असहि परस्पर पाए प्रसंगे / जुग जहि रहि जे अस्थिहि भंगे //

पर बखत तनि लागि अधिक, कारत बहुस बिश्राम /
मेटत दुःख सकल दिन के, अरु  लहहु मोरि नाम //

गुरूवार, ०८ अगस्त, २ ० १ ३                                                                                               

मन संसै सो पूछ निवारे । दुनौ बंधु पुनि सदन पधारे ॥
हड्डी पसली गाछि लकूटी । कहत समुझाए बार बधूटी ॥ 

बधु मन मज्जन चिंतन रंगे । दरसे दुखि मुख तीर तरंगे ॥ 
धनवन धनुर धर धारिहि धाए । एक दरसन पर दूज दरसाए ॥ 

गेह प्रधान पदक पिय पाएँ । जे काम कर कारीषिन्हि लाएँ ॥ 
ते बिपद संग परे खटियाए । भाग अठियाए त  को न उपाए ॥ 

सकल दसा दिस भा प्रतिकूला । सोचत बधु बैसत मति कूला ॥ 
अस चिंतत लोकत घन गाढ़े । लोचन तर घन्बर घाँ बाढ़े ॥ 


हृदय हाय घनकात घन, घनरस कन बरखाए । 
आह बन बाह बहा बहत, अधर समुंद समाए ॥  


शुक्रवार,०९अगस्त, २ ० १ ३                                                                                                       

बहुरि एहि सोच चित समुझाई / अनभल अहोइ भली हुआई //
काम कर्मधन आवन जावन / भै सोहन जौ सों मन भावन //

धार अधर सागर मन तोषे / कलकल नैन सकल जल सोषे //
इत पिय रहि रत पटिक पिराई / कुंचन लुंचन सहि नहि जाई //

अजहुँत असह दिन दोइ बीते / अगहुड़ न जानै कितौ कीते ॥ 
कवन पीरक अगन सितलाही / ऊरु फलक का करहि मिताई ॥ 

कर्मन कर्मठ रहहुँ उछंगू । भयउँ न मैं कहुँ परबस पंगू ॥ 
होउँ कुसलत जाउँ बलिहारी । रहहि प्रभु दया दीठ तिहारी॥ 

अस पिय जगद जननि नाथ, बिनयत निज कर जोर । 
कहत प्रभु धरौ सिस हाथ, पाँ परऊँ में तोर ॥  

शनिवार, १० अगस्त, २ ० १ ३                                                                                    

बहुरि अग दिवस रहि एहि नाईं । उतन भसुर बहुरन हरवाईं ॥ 
बधू के भाइहि कहत अगोरे । करत बिनति अरु किछु दिन होरें ॥ 

तब भसुर निज विवखा बखाने । कहि तानी मोरि बिबसता जाने ॥ 
बहुस कठिन कर कह मृदु बानी । होहहिं बहुसह कर्मन हानी ॥ 

ता पर बहिनै लागि बिहाहा । आगवनु लग लगे लग्नाहा ॥ 
अजहुँ बाँचे करम बहुतेरे । कारक मैं अह एकै अकेरे ॥ 

लघु भ्रात कहु कर्म के नाही । सो सोइ करि जोइ मन माही ॥ 
रहि कर्मठ मँझ भ्राता मोरे । एहिहु तोर पद परे खटोरे ॥ 

कारन अस श्रुत बिनत हमारी । कवन्हु कर बधु लेइँ सँभारी ॥ 

अस बिबसइ बचन भाषन, दिए अधर मुख भींच । 
अरु मलिन प्रभा किए भसुर, नयन पलक करि नीच ॥   

रविवार, ११ अगस्त, २ ० १ ३                                                                                          

प्रियतम भाइहि पुर पख धारे । बधु होरन बहु अर्चन कारे ॥ 
कहि दिन होरउ दु चंदु चारी । रहहि भल दया दीठ तिहारी ॥ 

बधु भाषन पर एकहु न माने । बास नगर पुनि भसुर पयाने ॥ 
तब बधु भ्रात कहि चिंत न कारु । मैं ठारत सबै लेइ सँभारु ॥ 

नहि नहि कहि बर तुमहु पयानौ । बेर बहुरि भलि लेवन आनौ ॥ 
पुनि नहि कह अस बोलइँ भाई । बिकट बरी अरु नगरि पराई ॥ 

ता पर लघु बालक बस भगिनी । तुहरे कारज बहुसह रहिनी ॥ 
पंच दस दिवस कछु न बिगोई । एकइ अकेरे भल दुइ होई ॥ 

एहि बिधि भाए बधुटि बचन,  एकहू दिये न कान । 
सकल ससुरारी सन्मुख, राखे कुल के आन ॥ 

सोमवार, १ २ अगस्त, २ ० १ ३                                                                                               

अस बधु बर लगि निरखत जोगे । सहि औषधि घर सेवक लोगे ।। 
औषधि घर जे नगर निबासी  । बधु बर बहिनै रहि तँह के बासी ॥ 

असन के अस रहि न कठिनाई । जोइ रसोई बहनै लाई ॥ 
इत पिय पट्टिक ऐसन बँधेइ । परे खाट बट करवट न लेइ ॥ 

जस जस दिन जामिन बिरताईं । तस तस पिय मुख छबि कुम्लाईं ॥ 
आरत बिनु मुख दरसत कैसे । नाथ बिनु कुचित कुमुदिन जैसे ॥ 

बिनु तन नंदन बिनु मन मोदू । बाहिर अंतर रहित बिनोदू ॥ 
सयन राध बिनु असन सुवादे । बारहि बार धरी अवसादें ॥ 

कसकत टसकत कहि पिया, धारें दंड कठोर । 
न जान को अघ किये जो, डारे प्रभु अस ठोर ॥  


मंगलवार, १ ३ अगस्त, २ ० १ ३                                                                                             

धरे गोद मह लघु लरिकाई । करत रहहि बधु  पिय सेवकाई ॥ 
चरत रहि कनी घुटुरुन माही । तेहि बखत पद धारति नाही ॥ 

एक दुपहर बहु अचरज कारी । नीक कनी कर केलिक धारी ॥ 
ललकित मुखरित लेइ हुँकारी । मोदु मगन हिलगन महतारी ॥ 

हिय बाँधत तनि चरनन चिन्हीं । पग पग पाइल छम छम किन्ही ॥ 
एक छिनु ठारत  भँमरि पुहुमिहि । परसत पद पावन भइ भूमिहि ॥ 

निरत करत जस धरनिहि दोली । हिरत डुरत अस ललनी लोली॥ 
अरसत परसत जस पौ पौने । पुहुप पटल तस भाँवर भौने ॥ 

लखि लवन बदन बाल नयन मूर्धन तेज पुंज लही । 
रखि कमन करन राग कपोलन अधरोपर कंज गही ॥ 
झाबर कंकनि दिए मधुर धुनी चमकत चारू चँवरी । 
लै हिलकोरत हिलगत लोलत दोलत जस लघु  भँमरी ।। 

लख अपलक बाल लरिकी, अनुरागित पितु मात । 
पुलकित मोदु मुदित मन की, भावन कहि नहि जात ॥ 

बुधवार, १४ अगस्त, २ ० १ ३                                                                                                       

बहुस दिवस पर पिय सुहसाई । लगे सुहावन मुख पर छाई ॥ 
बाल कनी पितु लोकित कैसे । बाल ससी मुख चातक जैसे ॥ 

भए दुइ मयंक एकै अगासे । एक बालिका एक पिय मुख भासे ॥ 
एक भुर भँमरत चितबत ठारे । एक भाँवर पथ दोलत चारे ॥ 

आखर देइ अपूरब दर्सन । अलोकित बरन बिस्मय लोचन ॥ 
पीर कमल मुख मल प्रभ छाई । मुदरित मुद कौमुद प्रफुराईं ॥ 

मानस मुख बिहरत हँसि हंसे  । कलित मुकुति रद अलि अवतंसे ॥ 
बिषाद बकूल इत उत दौरे । दिसि दरसत अरु ठौरत ठौरे ।। 

कबहु मात कबहुक पिता, बाँध कंठ भुज सीस । 
लल रसन दीपित लोचन, के कारत बर रीस ॥ 

गुरूवार, १ ५ अगस्त, २ ० १ ३                                                                                             

अस औषधि गृह दिवस पूराए । बैद चरन नउ पटिका चढ़ाए ॥ 
पुनि करक पिय निर्देसन दाए । सुतत रहिहु पद बिनु हिलराए ॥ 

बहुरि चौपद एक बाहि जुगाए । डगर अहोरे तहहि बहुराए ॥ 
असन गेह पिय निद्रा बियोगे । अनाकनी कर भोजन  भोगे ॥ 

काल रयन गिर भए अस पंगू । छिनु मह भए छत परे पलंगू ॥ 
चरन पटिक अस भै दुखदाई । बाम बिधि कछु कर सक न जाई ॥ 

जे कुरोग औषधि एहि माही । बहुस मास तन सयन बसाही ॥ 

दीन दसा देह दारिद, दुःख दुसही दिन दून । 
तिनकित तिलछित तिजहरी, पात रात चौगून ॥ 


 








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