देह पतित पद भू पथ पाथर / बेदन बिध करि तन मन थरथर //
तापर हलहर सीतरताई / अस जस करुबर नीम चढ़ाईं //
तबहि दूर एक बाहन देखे / धावत आवत रहि पद रेखे //
ज्यूँ ज्यूँ नियरे हमरे तेई / त्यूँ त्यूँ कासित कर टेई //
जसहीं हम हत दरसन दिन्हें / ढारत बहि एक कूलक किन्हें //
पूछे तुम्ह कौन हो भाई / आह बयस अस रैन बिहाई //
तब सब घटना बिबरन देईं / कारत आपन परखन तेईं //
रहहि निकट जे तव बहनोई / तेहि जन तासु परिचित होईं //
अरु सब सदजन पर पहिचाने / उठइ हमहि तुर जनपद लानै //
तहवाँ लेइ दूरभास, बहनुइ देइ उदंत /
हमहि कृतार्थ करत ते आए तुर तुरंत //
शुक्रवार, ०२ अगस्त , २ ० १ ३
भावक अरोग गृह ले गवनै / जहँ मो प्रथम उपचार दवनै //
पाहिले पद अंतर छबि तारे / तब एक काचन पतिका सारे //
भंग अंग मग चारन हारउँ / बार बार मैं जननि गुहारउँ//
अकुल बियाकुल भै मन भारी / भगिनी भावक मोहि सँभारी //
आपन भाँति कहत समुझाईं / अस छतवत तन रहत लहाईं //
सरीर सेल कलेवर कारौ / बिषादु तज तनि धीरज धारौ //
ते बखत तासु बचन सुहाईं / पीर परत मन धीर धराईं //
लावन पुनि जनि नगरि हरुआए / जोगत परखत बाहिन बिसाए //
ले बाहिता बाहनु के, पद मद्धम गति कार /
जामिनी जाम पइसाए, तुर जनि नगरि दुआर //
शनिवार, ०३ अगस्त , २ ० १ ३
अस प्रियतम उत्तर पुर भौंरे / बरतमान जग अवतर पौरे //
तत पर भए मुखरित मुख मौने / जस पग फेरत बधुटी लौने //
पिय दुर्गत के सकल बखाना / सुनत रहि बधु देवत धियाना //
घटन ऐसेउ बोल बताईं / घटिका जस पिय सों दरसाईं //
ले बहु बरन बचन भर बानी / ते कारन भए कंठ गिलानी //
कहत पर पिय अधर तिसनाई / तुरत बधु अधर तोइ धराईं //
धुरि पुर पट्टन कारत पारे / पथ पुल कुंजन कूल कठारे //
नहकत घन बन भँवरत थौरे / पहुँचाइ बहि चमक पुर पौरे //
जिन के चिन्ह बैद दाए, जे रहहि जननि बास /
हतक पथिक आए तहँ जहँ, तिनके निरुज निवास //
रविवार, ०४ अगस्त, २ ० १ ३
तहँवाँ बैसत भए तनि बेरे / रहहि नाड़िया रोगिन घेरे //
देखत निरखत दु चंदु चारी / आगत प्रिय के परखन पारी //
काँपत नारी धरकत छाँती / हट प्रद पिय जोगत भल भाँती //
प्रथम पुरातन पद चित्र पेखे / पुनि एक नउ अंतर छबि रेखे //
रोगिहि हुँते सयनइ पौढ़ाए / सइत सजन एक सदन पैठाए //
हतपद उँगरि तिर धर टेरे / ऊरु फलक जे भंजन केरे //
कौसल तस ते सिध संधाने / संधि बांध रत पटिक बँधाने //
बहुरि सकल जन भीत बुलाईं / सँधित बँधित पिय चरन दिखाईं //
भंग अंग हर कारत बरनन / अरु बोले अस बचन सुहावन //
चीरन करतन लागहिं नाहीं / ऐसेउ भाल भाँति जग जाहीं //
पर मोरे एक बचन दानहू / भयउ कुसल लग कहहि मानहू //
भसुर भाइहि सहित बधू, लाहत उर उत्कर्ष /
प्रतीत सँदेह भाउ जुग, हर्षित बैद सँदर्ष //
सोमवार, ० ५ अगस्त, २ ० १ ३
बहोरि बैद कहि एहिहि ठौरे / पंच दस दिवस लग परि होरे //
हमरे निरखन मह भलसाई / जोग परख पद करक जुराईं //
असक कसक अस पटिका कासें / मानहु पद दैं कारा बासे //
अट्टक पट्टक अस लपटाईं / दंडक जस दंडिका बंधाईं //
कर अंतर पद फेरत केरे / धौली मटिका गृह भित घेरे //
तपत श्रमकन अंतर रिसाईं / कलपन कीट जिमि कुलबुलाईं //
कहि दंडक जे लै हिंडोले / कोर्ट रोरत इत उत डोले //
तब तव दोनउ चरन बँधाहूँ / दंड अवधि अरु दै बैसाहूँ //
कारत अंजनु भाउ बियंजनु पीर भंगित पाद की /
सार सुरंगन बरनत बरननधीर बदन बिषाद की //
पिय हतभागी रयनइ लागी करत अँधियार नयन /
मध पथ सरसर भल्लक भय कर दै धन बर्जिता सरन //
आह भंगन पाउँ धरे, भन भन करत पियाए /
बैदक अस पट्टक करे, कोउ भाँति न सुहाए //
मंगलवार, ०६ अगस्त, २ ० १ ३
बितत दिवस भै रतियन कारी / पटिक चरन तन आरत भारी //
बिहान भयउ न रयनी बिहाए/ असन रसाए न देही सुहाए //
जागत पहलइ रैन बिताई / बर तरपन लिख कही न जाई //
प्रात काल सयनिन्ह सयनाए / नित्य करम पिय तहहि निपटाए //
कहहिं बंधुगन भा बार काजा / नहि त रहिहि हम सल्य समाजा //
पर अजहुँत मन संसइ कारीं / का ए भाँति पद संधि सहारीं //
पंथ जोग कर बखत लहाहीं / गवने दोनौ बैदक पाहीं //
बैसत सन्मुख तिनके आसन / बोले बरतत बहु अनुसासन //
जे तुम कहु पूछे तनि बाते / मत अनुरूप निज हित के नाते //
हमरे मति एक संसै लाही / सल्य रहित पद जुग तौ जाही //
रोगिन संजुग के बचन, संविदित चित साध /
संका संवारत बैद, वादिन अस संवाद //
बुधवार, ०७ अगस्त, २ ० १ ३
मानख बपुधर बिटप सरूपा/ बाल रूप अँखुआ अनुरूपा //
पोषत तिन सत सार अहारे / बिटप साख जस अस्थि सहारे //
सीध साध कहुँ आँठन गाँठी / अस्थि ऐसेउ जस को लाठी //
ऊरु फलक धरि अस आकारे / घुटरुहु कटि पद संधित सारे //
भंग लकुटि जस तिर्यक ताईं / तव प्रिय पद एहि बिधि भंगाई //
भय दोइ खंड धर दुइ खाँचे / दरसत अस जस को दुइ साँचे //
दोउ खगन कर खचत खचीते / खाँच खचावट जोगि सुधीते //
असहि परस्पर पाए प्रसंगे / जुग जहि रहि जे अस्थिहि भंगे //
पर बखत तनि लागि अधिक, कारत बहुस बिश्राम /
मेटत दुःख सकल दिन के, अरु लहहु मोरि नाम //
गुरूवार, ०८ अगस्त, २ ० १ ३
मन संसै सो पूछ निवारे । दुनौ बंधु पुनि सदन पधारे ॥
हड्डी पसली गाछि लकूटी । कहत समुझाए बार बधूटी ॥
बधु मन मज्जन चिंतन रंगे । दरसे दुखि मुख तीर तरंगे ॥
धनवन धनुर धर धारिहि धाए । एक दरसन पर दूज दरसाए ॥
गेह प्रधान पदक पिय पाएँ । जे काम कर कारीषिन्हि लाएँ ॥
ते बिपद संग परे खटियाए । भाग अठियाए त को न उपाए ॥
सकल दसा दिस भा प्रतिकूला । सोचत बधु बैसत मति कूला ॥
अस चिंतत लोकत घन गाढ़े । लोचन तर घन्बर घाँ बाढ़े ॥
हृदय हाय घनकात घन, घनरस कन बरखाए ।
आह बन बाह बहा बहत, अधर समुंद समाए ॥
शुक्रवार,०९अगस्त, २ ० १ ३
बहुरि एहि सोच चित समुझाई / अनभल अहोइ भली हुआई //
काम कर्मधन आवन जावन / भै सोहन जौ सों मन भावन //
धार अधर सागर मन तोषे / कलकल नैन सकल जल सोषे //
इत पिय रहि रत पटिक पिराई / कुंचन लुंचन सहि नहि जाई //
अजहुँत असह दिन दोइ बीते / अगहुड़ न जानै कितौ कीते ॥
कवन पीरक अगन सितलाही / ऊरु फलक का करहि मिताई ॥
कर्मन कर्मठ रहहुँ उछंगू । भयउँ न मैं कहुँ परबस पंगू ॥
होउँ कुसलत जाउँ बलिहारी । रहहि प्रभु दया दीठ तिहारी॥
अस पिय जगद जननि नाथ, बिनयत निज कर जोर ।
कहत प्रभु धरौ सिस हाथ, पाँ परऊँ में तोर ॥
शनिवार, १० अगस्त, २ ० १ ३
बहुरि अग दिवस रहि एहि नाईं । उतन भसुर बहुरन हरवाईं ॥
बधू के भाइहि कहत अगोरे । करत बिनति अरु किछु दिन होरें ॥
तब भसुर निज विवखा बखाने । कहि तानी मोरि बिबसता जाने ॥
बहुस कठिन कर कह मृदु बानी । होहहिं बहुसह कर्मन हानी ॥
ता पर बहिनै लागि बिहाहा । आगवनु लग लगे लग्नाहा ॥
अजहुँ बाँचे करम बहुतेरे । कारक मैं अह एकै अकेरे ॥
लघु भ्रात कहु कर्म के नाही । सो सोइ करि जोइ मन माही ॥
रहि कर्मठ मँझ भ्राता मोरे । एहिहु तोर पद परे खटोरे ॥
कारन अस श्रुत बिनत हमारी । कवन्हु कर बधु लेइँ सँभारी ॥
अस बिबसइ बचन भाषन, दिए अधर मुख भींच ।
अरु मलिन प्रभा किए भसुर, नयन पलक करि नीच ॥
रविवार, ११ अगस्त, २ ० १ ३
प्रियतम भाइहि पुर पख धारे । बधु होरन बहु अर्चन कारे ॥
कहि दिन होरउ दु चंदु चारी । रहहि भल दया दीठ तिहारी ॥
बधु भाषन पर एकहु न माने । बास नगर पुनि भसुर पयाने ॥
तब बधु भ्रात कहि चिंत न कारु । मैं ठारत सबै लेइ सँभारु ॥
नहि नहि कहि बर तुमहु पयानौ । बेर बहुरि भलि लेवन आनौ ॥
पुनि नहि कह अस बोलइँ भाई । बिकट बरी अरु नगरि पराई ॥
ता पर लघु बालक बस भगिनी । तुहरे कारज बहुसह रहिनी ॥
पंच दस दिवस कछु न बिगोई । एकइ अकेरे भल दुइ होई ॥
एहि बिधि भाए बधुटि बचन, एकहू दिये न कान ।
सकल ससुरारी सन्मुख, राखे कुल के आन ॥
सोमवार, १ २ अगस्त, २ ० १ ३
अस बधु बर लगि निरखत जोगे । सहि औषधि घर सेवक लोगे ।।
औषधि घर जे नगर निबासी । बधु बर बहिनै रहि तँह के बासी ॥
असन के अस रहि न कठिनाई । जोइ रसोई बहनै लाई ॥
इत पिय पट्टिक ऐसन बँधेइ । परे खाट बट करवट न लेइ ॥
जस जस दिन जामिन बिरताईं । तस तस पिय मुख छबि कुम्लाईं ॥
आरत बिनु मुख दरसत कैसे । नाथ बिनु कुचित कुमुदिन जैसे ॥
बिनु तन नंदन बिनु मन मोदू । बाहिर अंतर रहित बिनोदू ॥
सयन राध बिनु असन सुवादे । बारहि बार धरी अवसादें ॥
कसकत टसकत कहि पिया, धारें दंड कठोर ।
न जान को अघ किये जो, डारे प्रभु अस ठोर ॥
मंगलवार, १ ३ अगस्त, २ ० १ ३
धरे गोद मह लघु लरिकाई । करत रहहि बधु पिय सेवकाई ॥
चरत रहि कनी घुटुरुन माही । तेहि बखत पद धारति नाही ॥
एक दुपहर बहु अचरज कारी । नीक कनी कर केलिक धारी ॥
ललकित मुखरित लेइ हुँकारी । मोदु मगन हिलगन महतारी ॥
हिय बाँधत तनि चरनन चिन्हीं । पग पग पाइल छम छम किन्ही ॥
एक छिनु ठारत भँमरि पुहुमिहि । परसत पद पावन भइ भूमिहि ॥
निरत करत जस धरनिहि दोली । हिरत डुरत अस ललनी लोली॥
अरसत परसत जस पौ पौने । पुहुप पटल तस भाँवर भौने ॥
लखि लवन बदन बाल नयन मूर्धन तेज पुंज लही ।
रखि कमन करन राग कपोलन अधरोपर कंज गही ॥
झाबर कंकनि दिए मधुर धुनी चमकत चारू चँवरी ।
लै हिलकोरत हिलगत लोलत दोलत जस लघु भँमरी ।।
लख अपलक बाल लरिकी, अनुरागित पितु मात ।
पुलकित मोदु मुदित मन की, भावन कहि नहि जात ॥
बुधवार, १४ अगस्त, २ ० १ ३
बहुस दिवस पर पिय सुहसाई । लगे सुहावन मुख पर छाई ॥
बाल कनी पितु लोकित कैसे । बाल ससी मुख चातक जैसे ॥
भए दुइ मयंक एकै अगासे । एक बालिका एक पिय मुख भासे ॥
एक भुर भँमरत चितबत ठारे । एक भाँवर पथ दोलत चारे ॥
आखर देइ अपूरब दर्सन । अलोकित बरन बिस्मय लोचन ॥
पीर कमल मुख मल प्रभ छाई । मुदरित मुद कौमुद प्रफुराईं ॥
मानस मुख बिहरत हँसि हंसे । कलित मुकुति रद अलि अवतंसे ॥
बिषाद बकूल इत उत दौरे । दिसि दरसत अरु ठौरत ठौरे ।।
कबहु मात कबहुक पिता, बाँध कंठ भुज सीस ।
लल रसन दीपित लोचन, के कारत बर रीस ॥
गुरूवार, १ ५ अगस्त, २ ० १ ३
अस औषधि गृह दिवस पूराए । बैद चरन नउ पटिका चढ़ाए ॥
पुनि करक पिय निर्देसन दाए । सुतत रहिहु पद बिनु हिलराए ॥
बहुरि चौपद एक बाहि जुगाए । डगर अहोरे तहहि बहुराए ॥
असन गेह पिय निद्रा बियोगे । अनाकनी कर भोजन भोगे ॥
काल रयन गिर भए अस पंगू । छिनु मह भए छत परे पलंगू ॥
चरन पटिक अस भै दुखदाई । बाम बिधि कछु कर सक न जाई ॥
जे कुरोग औषधि एहि माही । बहुस मास तन सयन बसाही ॥
तापर हलहर सीतरताई / अस जस करुबर नीम चढ़ाईं //
तबहि दूर एक बाहन देखे / धावत आवत रहि पद रेखे //
ज्यूँ ज्यूँ नियरे हमरे तेई / त्यूँ त्यूँ कासित कर टेई //
जसहीं हम हत दरसन दिन्हें / ढारत बहि एक कूलक किन्हें //
पूछे तुम्ह कौन हो भाई / आह बयस अस रैन बिहाई //
तब सब घटना बिबरन देईं / कारत आपन परखन तेईं //
रहहि निकट जे तव बहनोई / तेहि जन तासु परिचित होईं //
अरु सब सदजन पर पहिचाने / उठइ हमहि तुर जनपद लानै //
तहवाँ लेइ दूरभास, बहनुइ देइ उदंत /
हमहि कृतार्थ करत ते आए तुर तुरंत //
शुक्रवार, ०२ अगस्त , २ ० १ ३
भावक अरोग गृह ले गवनै / जहँ मो प्रथम उपचार दवनै //
पाहिले पद अंतर छबि तारे / तब एक काचन पतिका सारे //
भंग अंग मग चारन हारउँ / बार बार मैं जननि गुहारउँ//
अकुल बियाकुल भै मन भारी / भगिनी भावक मोहि सँभारी //
आपन भाँति कहत समुझाईं / अस छतवत तन रहत लहाईं //
सरीर सेल कलेवर कारौ / बिषादु तज तनि धीरज धारौ //
ते बखत तासु बचन सुहाईं / पीर परत मन धीर धराईं //
लावन पुनि जनि नगरि हरुआए / जोगत परखत बाहिन बिसाए //
ले बाहिता बाहनु के, पद मद्धम गति कार /
जामिनी जाम पइसाए, तुर जनि नगरि दुआर //
शनिवार, ०३ अगस्त , २ ० १ ३
अस प्रियतम उत्तर पुर भौंरे / बरतमान जग अवतर पौरे //
तत पर भए मुखरित मुख मौने / जस पग फेरत बधुटी लौने //
पिय दुर्गत के सकल बखाना / सुनत रहि बधु देवत धियाना //
घटन ऐसेउ बोल बताईं / घटिका जस पिय सों दरसाईं //
ले बहु बरन बचन भर बानी / ते कारन भए कंठ गिलानी //
कहत पर पिय अधर तिसनाई / तुरत बधु अधर तोइ धराईं //
धुरि पुर पट्टन कारत पारे / पथ पुल कुंजन कूल कठारे //
नहकत घन बन भँवरत थौरे / पहुँचाइ बहि चमक पुर पौरे //
जिन के चिन्ह बैद दाए, जे रहहि जननि बास /
हतक पथिक आए तहँ जहँ, तिनके निरुज निवास //
रविवार, ०४ अगस्त, २ ० १ ३
तहँवाँ बैसत भए तनि बेरे / रहहि नाड़िया रोगिन घेरे //
देखत निरखत दु चंदु चारी / आगत प्रिय के परखन पारी //
काँपत नारी धरकत छाँती / हट प्रद पिय जोगत भल भाँती //
प्रथम पुरातन पद चित्र पेखे / पुनि एक नउ अंतर छबि रेखे //
रोगिहि हुँते सयनइ पौढ़ाए / सइत सजन एक सदन पैठाए //
हतपद उँगरि तिर धर टेरे / ऊरु फलक जे भंजन केरे //
कौसल तस ते सिध संधाने / संधि बांध रत पटिक बँधाने //
बहुरि सकल जन भीत बुलाईं / सँधित बँधित पिय चरन दिखाईं //
भंग अंग हर कारत बरनन / अरु बोले अस बचन सुहावन //
चीरन करतन लागहिं नाहीं / ऐसेउ भाल भाँति जग जाहीं //
पर मोरे एक बचन दानहू / भयउ कुसल लग कहहि मानहू //
भसुर भाइहि सहित बधू, लाहत उर उत्कर्ष /
प्रतीत सँदेह भाउ जुग, हर्षित बैद सँदर्ष //
सोमवार, ० ५ अगस्त, २ ० १ ३
बहोरि बैद कहि एहिहि ठौरे / पंच दस दिवस लग परि होरे //
हमरे निरखन मह भलसाई / जोग परख पद करक जुराईं //
असक कसक अस पटिका कासें / मानहु पद दैं कारा बासे //
अट्टक पट्टक अस लपटाईं / दंडक जस दंडिका बंधाईं //
कर अंतर पद फेरत केरे / धौली मटिका गृह भित घेरे //
तपत श्रमकन अंतर रिसाईं / कलपन कीट जिमि कुलबुलाईं //
कहि दंडक जे लै हिंडोले / कोर्ट रोरत इत उत डोले //
तब तव दोनउ चरन बँधाहूँ / दंड अवधि अरु दै बैसाहूँ //
कारत अंजनु भाउ बियंजनु पीर भंगित पाद की /
सार सुरंगन बरनत बरननधीर बदन बिषाद की //
पिय हतभागी रयनइ लागी करत अँधियार नयन /
मध पथ सरसर भल्लक भय कर दै धन बर्जिता सरन //
आह भंगन पाउँ धरे, भन भन करत पियाए /
बैदक अस पट्टक करे, कोउ भाँति न सुहाए //
मंगलवार, ०६ अगस्त, २ ० १ ३
बितत दिवस भै रतियन कारी / पटिक चरन तन आरत भारी //
बिहान भयउ न रयनी बिहाए/ असन रसाए न देही सुहाए //
जागत पहलइ रैन बिताई / बर तरपन लिख कही न जाई //
प्रात काल सयनिन्ह सयनाए / नित्य करम पिय तहहि निपटाए //
कहहिं बंधुगन भा बार काजा / नहि त रहिहि हम सल्य समाजा //
पर अजहुँत मन संसइ कारीं / का ए भाँति पद संधि सहारीं //
पंथ जोग कर बखत लहाहीं / गवने दोनौ बैदक पाहीं //
बैसत सन्मुख तिनके आसन / बोले बरतत बहु अनुसासन //
जे तुम कहु पूछे तनि बाते / मत अनुरूप निज हित के नाते //
हमरे मति एक संसै लाही / सल्य रहित पद जुग तौ जाही //
रोगिन संजुग के बचन, संविदित चित साध /
संका संवारत बैद, वादिन अस संवाद //
बुधवार, ०७ अगस्त, २ ० १ ३
मानख बपुधर बिटप सरूपा/ बाल रूप अँखुआ अनुरूपा //
पोषत तिन सत सार अहारे / बिटप साख जस अस्थि सहारे //
सीध साध कहुँ आँठन गाँठी / अस्थि ऐसेउ जस को लाठी //
ऊरु फलक धरि अस आकारे / घुटरुहु कटि पद संधित सारे //
भंग लकुटि जस तिर्यक ताईं / तव प्रिय पद एहि बिधि भंगाई //
भय दोइ खंड धर दुइ खाँचे / दरसत अस जस को दुइ साँचे //
दोउ खगन कर खचत खचीते / खाँच खचावट जोगि सुधीते //
असहि परस्पर पाए प्रसंगे / जुग जहि रहि जे अस्थिहि भंगे //
पर बखत तनि लागि अधिक, कारत बहुस बिश्राम /
मेटत दुःख सकल दिन के, अरु लहहु मोरि नाम //
गुरूवार, ०८ अगस्त, २ ० १ ३
मन संसै सो पूछ निवारे । दुनौ बंधु पुनि सदन पधारे ॥
हड्डी पसली गाछि लकूटी । कहत समुझाए बार बधूटी ॥
बधु मन मज्जन चिंतन रंगे । दरसे दुखि मुख तीर तरंगे ॥
धनवन धनुर धर धारिहि धाए । एक दरसन पर दूज दरसाए ॥
गेह प्रधान पदक पिय पाएँ । जे काम कर कारीषिन्हि लाएँ ॥
ते बिपद संग परे खटियाए । भाग अठियाए त को न उपाए ॥
सकल दसा दिस भा प्रतिकूला । सोचत बधु बैसत मति कूला ॥
अस चिंतत लोकत घन गाढ़े । लोचन तर घन्बर घाँ बाढ़े ॥
हृदय हाय घनकात घन, घनरस कन बरखाए ।
आह बन बाह बहा बहत, अधर समुंद समाए ॥
शुक्रवार,०९अगस्त, २ ० १ ३
बहुरि एहि सोच चित समुझाई / अनभल अहोइ भली हुआई //
काम कर्मधन आवन जावन / भै सोहन जौ सों मन भावन //
धार अधर सागर मन तोषे / कलकल नैन सकल जल सोषे //
इत पिय रहि रत पटिक पिराई / कुंचन लुंचन सहि नहि जाई //
अजहुँत असह दिन दोइ बीते / अगहुड़ न जानै कितौ कीते ॥
कवन पीरक अगन सितलाही / ऊरु फलक का करहि मिताई ॥
कर्मन कर्मठ रहहुँ उछंगू । भयउँ न मैं कहुँ परबस पंगू ॥
होउँ कुसलत जाउँ बलिहारी । रहहि प्रभु दया दीठ तिहारी॥
अस पिय जगद जननि नाथ, बिनयत निज कर जोर ।
कहत प्रभु धरौ सिस हाथ, पाँ परऊँ में तोर ॥
शनिवार, १० अगस्त, २ ० १ ३
बहुरि अग दिवस रहि एहि नाईं । उतन भसुर बहुरन हरवाईं ॥
बधू के भाइहि कहत अगोरे । करत बिनति अरु किछु दिन होरें ॥
तब भसुर निज विवखा बखाने । कहि तानी मोरि बिबसता जाने ॥
बहुस कठिन कर कह मृदु बानी । होहहिं बहुसह कर्मन हानी ॥
ता पर बहिनै लागि बिहाहा । आगवनु लग लगे लग्नाहा ॥
अजहुँ बाँचे करम बहुतेरे । कारक मैं अह एकै अकेरे ॥
लघु भ्रात कहु कर्म के नाही । सो सोइ करि जोइ मन माही ॥
रहि कर्मठ मँझ भ्राता मोरे । एहिहु तोर पद परे खटोरे ॥
कारन अस श्रुत बिनत हमारी । कवन्हु कर बधु लेइँ सँभारी ॥
अस बिबसइ बचन भाषन, दिए अधर मुख भींच ।
अरु मलिन प्रभा किए भसुर, नयन पलक करि नीच ॥
रविवार, ११ अगस्त, २ ० १ ३
प्रियतम भाइहि पुर पख धारे । बधु होरन बहु अर्चन कारे ॥
कहि दिन होरउ दु चंदु चारी । रहहि भल दया दीठ तिहारी ॥
बधु भाषन पर एकहु न माने । बास नगर पुनि भसुर पयाने ॥
तब बधु भ्रात कहि चिंत न कारु । मैं ठारत सबै लेइ सँभारु ॥
नहि नहि कहि बर तुमहु पयानौ । बेर बहुरि भलि लेवन आनौ ॥
पुनि नहि कह अस बोलइँ भाई । बिकट बरी अरु नगरि पराई ॥
ता पर लघु बालक बस भगिनी । तुहरे कारज बहुसह रहिनी ॥
पंच दस दिवस कछु न बिगोई । एकइ अकेरे भल दुइ होई ॥
एहि बिधि भाए बधुटि बचन, एकहू दिये न कान ।
सकल ससुरारी सन्मुख, राखे कुल के आन ॥
सोमवार, १ २ अगस्त, २ ० १ ३
अस बधु बर लगि निरखत जोगे । सहि औषधि घर सेवक लोगे ।।
औषधि घर जे नगर निबासी । बधु बर बहिनै रहि तँह के बासी ॥
असन के अस रहि न कठिनाई । जोइ रसोई बहनै लाई ॥
इत पिय पट्टिक ऐसन बँधेइ । परे खाट बट करवट न लेइ ॥
जस जस दिन जामिन बिरताईं । तस तस पिय मुख छबि कुम्लाईं ॥
आरत बिनु मुख दरसत कैसे । नाथ बिनु कुचित कुमुदिन जैसे ॥
बिनु तन नंदन बिनु मन मोदू । बाहिर अंतर रहित बिनोदू ॥
सयन राध बिनु असन सुवादे । बारहि बार धरी अवसादें ॥
कसकत टसकत कहि पिया, धारें दंड कठोर ।
न जान को अघ किये जो, डारे प्रभु अस ठोर ॥
मंगलवार, १ ३ अगस्त, २ ० १ ३
धरे गोद मह लघु लरिकाई । करत रहहि बधु पिय सेवकाई ॥
चरत रहि कनी घुटुरुन माही । तेहि बखत पद धारति नाही ॥
एक दुपहर बहु अचरज कारी । नीक कनी कर केलिक धारी ॥
ललकित मुखरित लेइ हुँकारी । मोदु मगन हिलगन महतारी ॥
हिय बाँधत तनि चरनन चिन्हीं । पग पग पाइल छम छम किन्ही ॥
एक छिनु ठारत भँमरि पुहुमिहि । परसत पद पावन भइ भूमिहि ॥
निरत करत जस धरनिहि दोली । हिरत डुरत अस ललनी लोली॥
अरसत परसत जस पौ पौने । पुहुप पटल तस भाँवर भौने ॥
लखि लवन बदन बाल नयन मूर्धन तेज पुंज लही ।
रखि कमन करन राग कपोलन अधरोपर कंज गही ॥
झाबर कंकनि दिए मधुर धुनी चमकत चारू चँवरी ।
लै हिलकोरत हिलगत लोलत दोलत जस लघु भँमरी ।।
लख अपलक बाल लरिकी, अनुरागित पितु मात ।
पुलकित मोदु मुदित मन की, भावन कहि नहि जात ॥
बुधवार, १४ अगस्त, २ ० १ ३
बहुस दिवस पर पिय सुहसाई । लगे सुहावन मुख पर छाई ॥
बाल कनी पितु लोकित कैसे । बाल ससी मुख चातक जैसे ॥
भए दुइ मयंक एकै अगासे । एक बालिका एक पिय मुख भासे ॥
एक भुर भँमरत चितबत ठारे । एक भाँवर पथ दोलत चारे ॥
आखर देइ अपूरब दर्सन । अलोकित बरन बिस्मय लोचन ॥
पीर कमल मुख मल प्रभ छाई । मुदरित मुद कौमुद प्रफुराईं ॥
मानस मुख बिहरत हँसि हंसे । कलित मुकुति रद अलि अवतंसे ॥
बिषाद बकूल इत उत दौरे । दिसि दरसत अरु ठौरत ठौरे ।।
कबहु मात कबहुक पिता, बाँध कंठ भुज सीस ।
लल रसन दीपित लोचन, के कारत बर रीस ॥
गुरूवार, १ ५ अगस्त, २ ० १ ३
अस औषधि गृह दिवस पूराए । बैद चरन नउ पटिका चढ़ाए ॥
पुनि करक पिय निर्देसन दाए । सुतत रहिहु पद बिनु हिलराए ॥
बहुरि चौपद एक बाहि जुगाए । डगर अहोरे तहहि बहुराए ॥
असन गेह पिय निद्रा बियोगे । अनाकनी कर भोजन भोगे ॥
काल रयन गिर भए अस पंगू । छिनु मह भए छत परे पलंगू ॥
चरन पटिक अस भै दुखदाई । बाम बिधि कछु कर सक न जाई ॥
जे कुरोग औषधि एहि माही । बहुस मास तन सयन बसाही ॥
दीन दसा देह दारिद, दुःख दुसही दिन दून ।
तिनकित तिलछित तिजहरी, पात रात चौगून ॥
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