دستیبھر کلامتر رنگے رووشنائی سے لکھا
حجرہ حرف سارے دامن ایک شب
ےگل تجھے خوبصورت ربی سے لکھا
बदस्तूर दस्तपर रंगे हिनाई से लिखा..,
दस्तीभर कलमतर रंगे रौशनाई से लिखा..,
दस्तीभर कलमतर रंगे रौशनाई से लिखा..,
हजारा हरफ सरे-दामन इक शब..,
ऐगुल तुझे खुबसूरत रुबाई से लिखा.....
सितारे शबे-सर थे सहर में खो गए.., ..ستارے شبے سر تھے سحر میں کھو گے
पहरों ढले शाम हुई आशकार हो गए..... .....پہروں ڈھلے شام ہی اشکر ہو گے
जा ग़ालिब का कुंचा है वां कासिम की गली है.., جا گلاب کا کوچاہے وا قسم کی گلی ہے
इक शोख सरापा हुस्न परी रूककर चली है.., ایک شوخ سراپا حسنپری روک کر چلی ہے
गुल की महक धनक की झलक चाँदनी फलक ने.., گل کی مہک دھنک کی جھلک چدنی فلک نے
सहर की शफक ने सुर्खियाँ रुख पर मली है..... شر کی شفک نے سرخیا رخ پر ملی ہے
बरंग कमाले-सोख सियाह जुल्फ खुली है.., ..برنگ کمالے سوخ سیاہ جلف کھولی ہے
कत्रात तिलस्मी अफशाँनी खलबली है.., ..کترات طلسمی افشںنی کھلبلی ہے
नज़रों की नमीं लब शबनमी बहर की जबीं.., ..نجروں کی ںمیں لب شبنمیں بھر کی جبیں
आबे-जमीं शीशा-ए-कालिब में ढली है..... .....آبے جمن شیشا ےکلیب میں ڈھلی ہے
SUNDAY, JUNE 10, 2012
सुर्ख-रु शफक-गुल बे-रंग उतारे गए.., ..سرخ رو شفک گل برنگ اتارے گے
शाख फ़िराक हुवे जुल्फों में सँवारे गए..... ..شاخ فراق ہوے جولفوں میں سںوارے گے
नाज-ओ-नजाकत से जमींदोज हुवे.., ..ناج و نجاکت سے جمیں دوج ہوے
जाँ नहीं मगर जन्नतनसीं हैं.., ..جاں نہیں مگر جننت نسیں ہیں
जाँनिसार हुवे हसीं मुश्तों से.., ..جاننصر ہوے حسیں مشتوں سے
ख़ाक हमें गज़ गज़ गज़ीदा लगे..... ...خاک ہمیں گض گض گجیدا لگے
चन्द तसवीरें-बुताँ चन्द हसीनों के खुतूत.., ..چند ٹسوتیں بتاں چند حسینوں کے ختت
बाद मरने के मेरे घर से ये सामाँ निकला..... .....باد مرنے کے میرے گھرسے یہ ساماں نکلا
----- ।। ग़ालिब ।। -----
WEDNESDAY, JUNE 13, 2012
गुले-आब नौ बहार नौ रंग हस्ती है.., ..گلے آب نو بہار نو رنگ ہستی ہے
दीदा-ए-आबीदाँ-आबीदाँ बरसती है..... ..دیداے آبیداں آبیداں برستی ہے
SATURDAY, JUNE 30, 2012
कभी दीदारे-यार का रोजा हुवा.., ..کبھی ددارے یار کا روضہ ہوا
कभी गेम-गुफ्तार का रोजा हुवा.., ..کبھی گامے گفتار کا روضہ ہوا
सदके लब तारदारी-ओ-इफ्तारी का.., ..سدکے لب تارداری و افطاری کا
लबे-लबाब लब उतार के रोजा हुवा .., .....لبے لباب لب اتار کے روضہ ہوا
अहले अक्स फना है आईने-आइन्दा पर..,
अश्क अश्क इफ्तार के रोजा हुवा.....
SDAY, JTHURULY 12, 2012
सफा सफ्फे की ही बदल थी..,
या के शफ्फाफ सफ़हे की ग़जल थी..,
कहीं कोई था के दागदाँ था..,
कहीं तो उढ़ता सा धूंआ था..,
अबके अब्रो-आब में यूँ इंकलाब आया..,
के लहू लिपट के कतरों से बहे जाता है.....
सितारे शबे-सर थे सहर में खो गए.., ..ستارے شبے سر تھے سحر میں کھو گے
पहरों ढले शाम हुई आशकार हो गए..... .....پہروں ڈھلے شام ہی اشکر ہو گے
जा ग़ालिब का कुंचा है वां कासिम की गली है.., جا گلاب کا کوچاہے وا قسم کی گلی ہے
इक शोख सरापा हुस्न परी रूककर चली है.., ایک شوخ سراپا حسنپری روک کر چلی ہے
गुल की महक धनक की झलक चाँदनी फलक ने.., گل کی مہک دھنک کی جھلک چدنی فلک نے
सहर की शफक ने सुर्खियाँ रुख पर मली है..... شر کی شفک نے سرخیا رخ پر ملی ہے
बरंग कमाले-सोख सियाह जुल्फ खुली है.., ..برنگ کمالے سوخ سیاہ جلف کھولی ہے
कत्रात तिलस्मी अफशाँनी खलबली है.., ..کترات طلسمی افشںنی کھلبلی ہے
नज़रों की नमीं लब शबनमी बहर की जबीं.., ..نجروں کی ںمیں لب شبنمیں بھر کی جبیں
आबे-जमीं शीशा-ए-कालिब में ढली है..... .....آبے جمن شیشا ےکلیب میں ڈھلی ہے
SUNDAY, JUNE 10, 2012
सुर्ख-रु शफक-गुल बे-रंग उतारे गए.., ..سرخ رو شفک گل برنگ اتارے گے
शाख फ़िराक हुवे जुल्फों में सँवारे गए..... ..شاخ فراق ہوے جولفوں میں سںوارے گے
नाज-ओ-नजाकत से जमींदोज हुवे.., ..ناج و نجاکت سے جمیں دوج ہوے
जाँ नहीं मगर जन्नतनसीं हैं.., ..جاں نہیں مگر جننت نسیں ہیں
जाँनिसार हुवे हसीं मुश्तों से.., ..جاننصر ہوے حسیں مشتوں سے
ख़ाक हमें गज़ गज़ गज़ीदा लगे..... ...خاک ہمیں گض گض گجیدا لگے
चन्द तसवीरें-बुताँ चन्द हसीनों के खुतूत.., ..چند ٹسوتیں بتاں چند حسینوں کے ختت
बाद मरने के मेरे घर से ये सामाँ निकला..... .....باد مرنے کے میرے گھرسے یہ ساماں نکلا
----- ।। ग़ालिब ।। -----
WEDNESDAY, JUNE 13, 2012
गुले-आब नौ बहार नौ रंग हस्ती है.., ..گلے آب نو بہار نو رنگ ہستی ہے
दीदा-ए-आबीदाँ-आबीदाँ बरसती है..... ..دیداے آبیداں آبیداں برستی ہے
SATURDAY, JUNE 30, 2012
कभी दीदारे-यार का रोजा हुवा.., ..کبھی ددارے یار کا روضہ ہوا
कभी गेम-गुफ्तार का रोजा हुवा.., ..کبھی گامے گفتار کا روضہ ہوا
सदके लब तारदारी-ओ-इफ्तारी का.., ..سدکے لب تارداری و افطاری کا
लबे-लबाब लब उतार के रोजा हुवा .., .....لبے لباب لب اتار کے روضہ ہوا
अहले अक्स फना है आईने-आइन्दा पर..,
अश्क अश्क इफ्तार के रोजा हुवा.....
SDAY, JTHURULY 12, 2012
सफा सफ्फे की ही बदल थी..,
या के शफ्फाफ सफ़हे की ग़जल थी..,
कहीं कोई था के दागदाँ था..,
कहीं तो उढ़ता सा धूंआ था..,
अबके अब्रो-आब में यूँ इंकलाब आया..,
के लहू लिपट के कतरों से बहे जाता है.....