मंगलवार, 16 अक्तूबर, 2012
तर तर तरियन चरनउ चापा । दया धर द्विज दाप उधापा ।।
तथ्य तहँ कहँ तमि षिची सांचा । तपसी नहँ वहँ निपट निसाटा ।।
दलउ दौह्रदय दह दौहाटा । नटक नाटितक नाठन नाठा ।।
धूरे दर्वन धमक धर पावा । दान मान धन दातृ धरावा ।।
धोतर धोधर धुर धुंधराया । तजन प्रान निज तन तर धाया ।।
नाथ नर्दन निबहन निबहुरा । धर तातल तर धावन तूरा ।।
तुतथ निरख औषध न नयंगा । दरीभृत धर तर उपारंगा ।।
धुर धुर ऊपर निसि नभ धाए । देव भूव भव भवन अवधाए ।।
दीर्घ बाहु मारुत सुत निसिचर खर नभमान ।
निष्फलक तर दशरथ पुत तीर तूनीर तान ।।
तहाँ निगदन नाथ नर नाईं । देखहु नयनु लखनु दुखदाई ।।
ततसुत आए न निसि अधियाई । तजनमन त्रसन दया निधाई ।।
दरसहु दसा अनुज उर धारा । दुखातन दुखमन अति दुखियारा ।।
तपवन अयन तव तजन ताता । तपस चरन तनवंग त्रितापा ।।
नयन पथ पटल जल निर्झारे । धार धार धर धरन न धारे ।।
दिग दरपन दिर्न धर अरुनाई । दुःख बहुल धर दुःख दुहाई ।।
तान तान तन ताना पाई । तान तान तन तातल धाई ।।
तार तार तर तंत्री थाई । तार तार तर दरस दुभाई ।।
दया निधान सील सागर निधि । दिन बंधू बदन बिलखन बहु बिधि ।।
दया आद्र धर द्रव द्रव धारा । दरसन महिमन अपरमपारा ।।
तरण तरण तरंगिणी तन तर तर तरंग माल ।
तरण श्रवण करण आगमन तुर तुर तुरंग लाल ।।
बुधवार, 17 अक्टूबर, 2012
दसकंठारि कंठ तर धारे । नाम गुन किरत कपि किलकारे ।।
देवबैद दुःखछद उपचारा । धराधार तल तुरतहिं धारा ।।
निबंधन बंद भय बाहु बंधु । निअर तर निकर निनादित नंदु ।।
दसानन श्रवन द्वेषी उदंता । दसोधड़ धुनहु दसधड़ वंता ।।
निद्र कुंभकरनउ चरन निजकाए । निद्र मगन भय भंजन भ्राताए ।।
दुर्मुख देरिरिपु नर आहारी । धुर धमधूसर देही धारी ।।
तेहि दसानन निगदन गावा । नेम धरन धर लंकन धावा ।।
निभृतउ भूतहिं निमद निबोधा । निपतय निपटाहु निपुन जोधा ।।
धरात्मजा धरन हरन कथन कह दनुजेंद्र ।
तररन श्रवन कुंभकरन धिक्कार दानवेंद्र ।।
दुष्कृत कर्मन तुम्ह दुष्कर्मा । दुष्कुलीन कुल किरतन धर्मा ।।
ततछन तजनहु तात दंभन्हिं । धरन चरन तव तुरत त्रिभुवनहिं ।।
त्रिभुवन गुन गनी मगन अनुजा । देवमदन मस मगवउ दनुजा ।।
दाढ़उ कराल दंडा धारी । दानव दंस भीरुकन हारी ।।
दुर्मद पय कुंभकरन कारा । निपतय गयउ धुजिन नहिं धारा ।।
देख दृगु लघु अनुज अगावा । धरन परन निज नाम धरावा ।।
तात लात धर मरतइ मारा । दरिन कहिन कह अनुज दुहारा ।।
धन्य धन्य तै धन्य निधाना । निसिचर नरेस दिगबल बाना ।।
निपत्य तरन कुंभकरण दनुज अनुज निर्दंड ।
त्रिभुवन ध्वजिनी धौंजन ध्वनि ध्वान प्रचंड ।।
दीर्घ कंधर केशउ कारी । गति जंघ जीव तुंडी धारी ।।
दरसन संसन निद्र पिछउ बाहु । मूलक वर्चिक रसन रद राहु ।।
धर्म चरन चर ग्रंथन त्राता । त्रिभुवन लिकन जगती धाता ।।
धनुर्धर पानि धनुगुन कारा । धरसन धर्षिन धमक धमकारा ।।
दृढ़ करमन धनवन संधाना । दालान दलमलन धनु धर ताना ।।
तान तान पुर पुंख पसारे । तेजपुंज तर धनु कर धारे ।।
तीर तूनीर तत तर तारे । तेज तेजनक तेज तरारे ।।
तर तर धनुधर दसति दस धाए । दसन कुम्भकरन धर धंसाये ।।
तर तर तरनहु वदनहु धावा । त्रोन द्रोन कल कलस धरावा ।।
निसर सर सर निकर नाराचा । दसमुख समुख अनुजमुख नाचा ।।
देव दूषणारि धनुर्धारी धन्विनय धनेश्वरम् ।
धन्य धन्यम्मन्य धन्या धीनय धन्वन धन्वाकरम् ।।
दृशीक दृश्यम् द्रष्ट द्र्शोपम दृष्टि कृत गत गोचरम् ।
देव कुल गण गतिक गुण गन पुंस पुंडरीक लोचनम् ।।
निषंग निषंगी षंगथि निशित निशात शत सर ।
निगूढ़ गत गम गति निशरण शमन निशिचर ।।
गुरूवार, 18 अक्टूबर, 2012
दिवस छय कर संजात सेना । धरो हर धरोहर धर देना ।।
दिन दयालु दल बली धीरा । तूला तूल तिलक धर तीरा ।।
निकर निकारन निसिचर सैना । दूबर दूभर तहँ दिनरैना ।।
देखि अनुज धड़ दसकंधारा । धड़ धर कर दुरक्रंदन कारा ।।
तब ततछन आवनु घननादा । निजकन बोधन तात निगादा ।।
ताड़ तडाका तड़कउ देखाहु । दिग बल चक्रांग तुरंगन ताहु ।।
तड़क तड़क तड़ ताड़ तड़केइ । ताड़ ताड़ तुर ताड़क लरिकेइ ।।
निषंगथि रथि निषंगहिं षंगा । त्रिसक्ति सूल धनुक धडंगा ।।
दूरारुड़ गमन पतन पंता । दूरधव अधिगम अतिक्रम अंता ।।
दंद दुगुनइ दुंद द्विदंडी । धूर धुरेरन उरहु उदंडी ।।
त्रिगुणा गुणित गमन गगन घननाद नदन नाद ।
तर तर थिर थर थर थरन दुर्वहन वदन वाद ।।
दस दिसि धरकर नभचर चाषा । निषंगन षंगी निकस अकासा ।।
तरु मृग बर चर नभ नदनंता । निदर्शन दरस न निवृत्तंता ।।
निकषसुत सीरू सर सर सारा । निकृत कृति करनउ निकर निकारा ।।
तिलकन तिलछन तालु चटकाहु । तर तर तीरउ फिरउ फिराऊ ।।
दरी भृत मुख तंतु जाल गिरउ । तर तर तरन तनु तात तितऊ ।।
नाग फाँस फन फनकन फेरा । तरकर खरकर घनकर घेरा ।।
नागन नाखन नक नक नाँघा । दनुपति सुत समर सुर सांगा ।।
नाग निबंधन नाथ निबांधा । नाथ निबंधन नाग न बांधा ।।
नकपति जित जामवंत धारा । धारण चरन धरु उर पर मारा ।।
धारण चरन अंक लंकन नाखा । देवरिषि दरस लच्छन लाखा ।।
नाक नाख नाकेश जित नाग पांशन पाश ।
नव व्यूह नागेश थित तल थल नीर निवास ।।
ताक्ष्र्य ध्वज तार तर ताक्ष्र्य तक्षणा तक्ष ।
त्रिगुणा गुणित नाग निकर ततक्षण भक्षण दक्ष अक्ष ।।
नख नग धर तरु मृग बर भारे । धड़ धड़ गढ़ चढ़ बढ़ बढ़ धारे ।।
निससन सांसउ नकपति जित जागा । देखि दनुपति निलज लज लागा ।।
तुरतउ गयउ दरी भृत मुखी । देव यज यजन कारन हवि हूति ।।
तहँ तंत्रन बिबीषन बिधाना । तात तहु सुनहु धीगुन धाना ।।
द्रोहचिंतन घननादन तुलहु । त्रिगुना गगन हवन हवि धरहू ।।
धराधार दिन्ह नाथ निदेसा । निकष निषंगन नमन निमेषा ।।
निकस निकर्षन दिग बल बीरा । दलज गंजन गिरा गंभीरा ।।
थित थिर थूलन तहँ न थिरकौहुँ । तौ तुम्ह मम नाम न धरौहू ।।
धर त्रिभुवन चरण सरोज धवन द्विसहस्त्राक्ष ।
नल नील तारा तनोज तत तनय मयंद दक्ष ।।
शुक्रवार, 19 अक्टूबर, 2012
देखहु गवउ आवहन आहा । देत दंश भीरु सतहु सुआहा ।।
थित थिर थरकन थिरक न थावहु । धर त्रिसूल तब दधिसोन धावहु ।।
दिग बल भद्र मुख समुख सब आहुं । तूल पकड़ पिछु घननादनाहु ।।
धारा धर बिष कर धर धारी । धमक धमक पड़ तडि तरवारी ।।
ततसुत तारापुत त्रस त्रासे । तासु त्रिसूल सिर सबहिं धाँसे ।।
दूरपातहु द्रुन षंड प्रचंडा । नौबिधि धातु ब्यूवहु खंडा ।।
तर तर तरन लछिमन लच्छा । दइत द्वितई द्रुत द्रुतै अछा ।।
देखि दुर्जय अरि दर भर भिता । ताप तपन तर तपो बल तिता ।।
तेज तेजनक धनुधर धारा । त्रिभुवन निगद तुर उर उतारा ।।
निबहन बरनउ बरहन बहुरा । निभ निभ भरमन धुरी न धूरा ।।
तहँ कहँ त्रिभुवन जपन त्यों त्यक्त प्राण ।
धन्य धन्य जन्य जन्मन त्रस रेणु तरण त्राण ।।
ततसुत तेहि धुर ऊपर धारा । धरउ रखहु सरनदीप दुआरा ।।
देवगन गगन गिरा गहु गावहिं । दुदुंभ दुदुंमा धूम धमावहिं ।।
दुःखमय भय मयसुता दुखियाहि । दुर्क्रंदन करइ धीर न थाही ।।
त्रिभुवन भवन भय भिनुसारा । तर निकर धर तुरियन दुआरा ।
द्विगुनी गुन चरन बचन बाहिका । सिर सीर्ष सहस्त्र सेन सिखा ।।
दल गंजन मन दानउ दोला । दरस दसानन निबचन बोला ।।
दीठ पीठ बत बीर भट भीरु । तारन तर तर समर सूर सिरू ।।
निज भुज बलहा हा बलकाहाँ । धमनिक अहनिक अहम् मति आहाँ ।।
तुर तुर तुरगी तुरी तुरंगा । तिल तिल तूल तूली पतंगा ।।
धर्षणीय धर्ष धर्षण धौर्तक धौर्य धर ।
धवन धौरण रावण रण नृदुर्ग संस निशिचर ।।
ध्वज अंशुक धर थंभन धारी । दंड भय भृत मुख अहंकारी ।।
दिग बल बली बहु मुख भुजंगी । धरनउ चरनउ अनी चतुरंगी ।।
दंश भीरु दंती मदउ मुखा । दलहु चलहु दंद दंदसूका ।।
धुर्बह बहनु बहु धूर्बीना । दचक दचक दधि दचन दच्छिना ।।
दगड़ धगड़ थक तगड़ नगाड़ा । धड़ धड़ाधड़ बढ़ बढ़ गाड़ा ।।
धुर उढा धुर ऊपर धराऊ । धूनक धूनन धुजिनी धाऊ ।।
धूम केतन पथ अगन बाना । आभउ अंग अयन अयमाना ।।
देखि निकट धुजिनी द्वैपाई । धाए तर करि तात दोहाई ।।
दंड काक चारी ठक्का धारी बालधि बहु वाहिनी ।
थंभित थर थर थली थरि धर थंभ न थाम्हनी ।।
नग नाग फाँस नखांक धाँस नखरायुध नखोटनी ।
दंती मदन दंड दसानन त्रिजगत जय जय कारिनी ।।
द्वार द्वार द्विआगमन द्विद्विपी द्विद्वीप ।
द्वि साहस्त्र सैन्य हन द्यौ द्यौ द्यवन उद्धिप ।।
शनिवार, 20 अक्टूबर, 2012
दनुज धुजिन धज धुजिहिन धाता । देखि दसा दिसि दुखभय भ्राता ।।
द्वापर दापहु उर अनुरागा । धरनहु परनहु निगद निरागा ।।
दसारथि रथ न त्रान तुरंगा । दुर्जय जय भय अति दुर्लंघा ।।
दया कर सिन्धु सील निधाना । निबचन बंधु दयित बर दाना ।।
दीछन दछ सुत क्रतुध्वंसिना । दीछक दीछा दयितहु दीना ।।
धीर बीर दय धरम धुर तिना । दृढ़ करम चेतन तिते धुजिना ।।
दम छम सम धर कर परहिता । तुरिय तुरंग रछ त्रिजग जीता ।।
देवाराधन निपुन निषंगथि । त्याग तनरक्षक निषंग तृप्ति ।।
दिग बल बुध दान दिर्घायुधा । दछ दमथ दुष्कर धनु निजुधा ।।
नित्य करम जात बुद्धि बहुला । थिर निर्मल तन मन त्रोन तुला ।
द्विज निवेदन बेद निर्भेदा । तेहि तुर सूर सुजय सुभेदा ।।
धूर धुरंधर धर धुरन दर्शन ( दिक्षण) श्रवण सुधीर ।
दिग्गज विजयी दशानन दुर्जय जयंत धीर ।।
धन्य धन्य तुम्ह धनेश धन्यम्मन्य अहमेव ।
धर दान धर्मोपदेश निवचन विभीषण एव ।।
उत तत्सुत तारातनय इत दसकंठ दहाड़ ।
नाम धर निज देवेशय तडिन्मय तडित ताड़ ।।
तिमिर भिद हर तूल तिलक धर तुणीर तर तर तुरंगा ।
तेज तेवर तेह तेहर धर समर सुर सिर सुरंगा ।।
तम काण्ड कारी तमाचारी तमो गुणी गण गर्जना ।।
तीक्ष्ण दंष्ट्रक तेज तक्षक तार पत स्वर तर्जना ।।
तंत्र जाल झाड़ गाल फाड़ तरंगी ताड़ मालयम् ।
तर तारण तुल धारण धुल नर केसरी हरि कौतुकम् ।।
धू तुक धून धुनक धुनन देव गिरा गृह गर्जना ।
तरक तरण तृण तडि तडि तृण तुषार कर गिरि पाषाना ।।
दर्श निज दल तल तिलछन दस-दस भुज दस धनुर ।
धरन दौकूल दशानन धड़ धड़ ध्वजिन दूर ।।
तड़ातड़ ताड़हु तृपल तन तासु । तड़ तड़ तड़कहु धंतीगढ़ धाँसु ।।
धायउ धर दसकंधर दापा । तर तर कर किलकारउ धापा ।।
थिरन रथन थिर थिर थिरकौहाँ । दुर्मद दुर्जन दुहृदय द्रौहा ।।
दपट झपट झट दसकंधावा । त्राहि त्राहि तब तर कर धावा ।।
तर तर तिलछित तरन धराधारा । नौधातु धरत सत सर सारा ।।
तुंग सिखर उर दनुज उतारा । धँसक धचक धर दसकंधारा ।।
निष्प्रतिभ परन धरनि निसांसा । ततछन उठहू जगनउ सांसा ।।
दान धृत्वन धर दीर्घायुध उर उतर धराधारहिं ।
निपतय पातन अधर उठावन दसमुख निसंसन निसकहिं ।।
धृति धृत्वन धराधार धरन धुर उपर तुल धूलकनी ।
निरपाय पावन धर उठावन दसानन त्रिभुवन धनी ।।
देखि ततसुत तहँ धावन निबचन भीषन बाँच ।
तरुमृग आवनहिं रावन तेहिं धौल धौलन धाँच ।।
रविवार, 21 अक्टुबर, 2012
नीक निषंगकर नेक निकर तर निकष निकटि उपलाकरम् ।
नय कोविदय नावनीतय दृग भृगुरेख नीकहृदयम् ।।
नयन नारायण नलिनी नंदन खंड मंडन मंडपम् ।
धनुगुण गुंजन गतिक गगन अहि महि दधि दोलारुढ़म् ।।
देवसुर लोकन शोभन गगन सुमन निर्झार ।
नाथ माथ त्रिपुंड वर्ण त्रस रज नयन आधार ।।
निसान निषंग षंगथि संगा । दसहिं दिसि दामिनी दमकंगा ।।
धीर धनेश धनुर तर तूरा । निकर कर सर तर सिरउ सूरा ।।
तन तपन कर तापा तपाका । नदीन गगन घन ढाकन ढाँका ।।
तीर तरन तुल तोयन माला । तर तर तरनि तूनीर ताला ।।
तरु तरु तरियन तिरनउ तीरहिं । तमो गुन गुनीहिं गिन गिन गिरहिं ।।
दिसि दिसि दरसहिं ताड़क ताड़ा । तुषार तृपल तरु भरू अपारा ।।
नीर रुधिर भर धेनी धाई । धन्य धन्य बीर धर भरमाई ।।
तड़तड़ाहट भट पटल पाटा । द्रव द्रावन रावन द्रोहाटा ।।
त्रि जग कर वंदन मोहन जग प्रभु प्राण प्रणाम ।
त्रैलोक्य नाथ त्रिभुवन चरण त्रिवणी धाम ।।
देखहिं त्रिभुवन चरनउ चारी । देवन्ह त्रसहु अस दुखकारी ।।
देवपति पथ रथ निज नियोजा । द्रुत गति सूत सरनहु नियोगा ।।
तेज धुजिनउ धज दिव्य दरसहि । तीर तुरिय तुर तुरग अकर्षहिं ।।
धुजिनारुढ़ त्रिजगत अवलोका । धाए पाए तर तेज अनोखा ।।
त्रिभुबन नयन द्विज चरन नाए । त्रस अस निगदन धुजिहिं दौराए ।।
तब दिगबल बहुमुख भड़कहु । तर्जत गर्जत ताड़न तड़कहु ।।
तहँ कह ततछन द्वेष निबाहुं । दीठ पीठ बत तवहिं दरसाहुँ ।।
नर्मन निगदन दीन दयाला । तथा कथन तन तव दसभाला ।।
तत्व ज्ञान निष्ठ भाषण तथा कथित विध कथन
तत परायण नर सम तदनुरूप भव आचरण ।।
एक सुमन प्रद एक सुमन फल एक फलइ केवल लागहिं ।
एक कहहिं कहहिं करहिं अपर एक करहिं करत न बागहिं ।।(तुलसीदास)
दुर्बचन बदन दर्पत दसकंधा । तुल तडितहि तर तारन अंधा ।।
नानाकार नाराचउ धाए । दसति दस दिसि धर द्यौ द्यौताए ।।
ध्वस्ति साजव सर सर सारे । तुरतइ दहनइ तरन तरारे ।।
दुइ सहस्त्र सर सार दौराए । निफल सकल सर फर फिरत आए ।।
तार सार सर सत सध धाया । धुजीबान धँस धरनि धराया ।।
दसारथिहिं उत सूतउ उठाए । दसावतार तब ताप तपाए ।।
निकष कष कर तर तीर अंगा । निजुद्ध बिरुद्ध क्रुद्ध निषंगा ।।
निकट निसाटक निकर निकारे । धार धार धर सर सर सारे ।।
तान तान तूनीर तर दंत द्रष्टा कराल ।
नक् निकुरम्ब कृंतन कर नग नग तरंग माल ।।
नलिनी खंड मुंड झुंड निभ निर्गत निस्तार ।
तीर तीर तुरंग तुंग तर तर दशावतार ।।
तीस तीर तरनउ रनधीरा । दु दस बाहिं दससिर निचहिं गिरा ।।
निटिल निकाटन नाथ निकिइना । निकटहिं उपजउ भयउ नबीना ।।
निटिल टले ना टालहिं टाले । दसति दस दरसहिं दसहु भाले ।।
दल बल बहुमुख भुज धनु ताना । तर्जत गर्जत नभ अभिमाना ।।
निपतय पतन देखि दससीसा । दस दस भुज सर तर दसहु दिसा ।
धरन धुजिन धर तर दंडएकी । निहार निहार न दिनकर देखि ।।
निकाटउ निटिल नभ गति धावहिं । ध्वनि गुंजजय भय उपजावहिं
निकृत निकारण निकर निकालन निटिल निकषात्मजय ।
नर नारायण नर्दन नर्मन निकर सर सिर निकृन्तनय ।।
नभ नाभि नाल काल माल भाल वृंदा वृत्त विबंधनम् ।
नदी नीर रुधिर निमज्जन शरीर समर तर निभ निराजनम् ।।
दृश्य दर्श दसकंध धार तेजसपुंज प्रचंड ।
दस तूणीर तर उतार अनुज कर काल दंड ।।
सोमवार, 22 अक्टूबर, 2012
दिग आवत दरसहिं बल बालिहा । तहँ सहँ सरनपन सहुँ सालिहा ।।
निछेपहिं निसस नेक निअराहु । निगदन बिभीषन दिगु बहु बाहु ।।
दुर्भग मति मद जोगन जोधा । तै तपन नग नर बर बिरोधा ।।
नीलकंठ कंठ काट चढ़ाए । तब एक कपाल कै कोटि काए ।।
तेहिं निमित निर्जित जीव जिता । तरन अवतरहिं अब तव दहिता ।।
धर्षन परधन धरन धनासा । तथा कहि तात तातल धाँसा ।।
निपीरन पीर निपतित पाता । धरउ चलउ तहँ जहँ जगत्राता ।।
दापतहि तब दनुपति धाया । निपतय ततसुत धम धमकाया ।।
दूष्नारि निदेसन धर दौर दौर तेज तर ।
दरस दल गंजन बल बर धूर्त रचन कृति कर ।।
देखे तरुमृग दसमुख मायहिं । त्राहि करन सरन तरन आयहिं ।।
धावहिं दिसि दस दसति दसमुखा । दुर्हृदय भय भयंकर भूखा ।।
ततछन त्रिभुवन गुनी निकाटा । तम गुन धन हरण निभ निफाटा ।।
निकर निकर तर सुर नाथ नाए । तरलत तमकि महिहिं सहित आए ।।
तब नील नल धड़ बढ़ चाढ़े । नखन्ह नखोढ़ निफरन फाढ़े ।।
दर्पकल धर दसमुख दहाड़ा । दापित धरइ धँसइ दुइ दाढ़ा ।।
ततसुतादि धरहिं करहिं निसंसा । निसिकरन कर अटाहस नृसंसा ।।
देखि निज दल निरुद्ध अघाता । दीर्घकेशवि दनुज निघाता ।।
निसांस संसन निसिचर निपतित पत्य आघात ।
निहारहिं निससन निसतर दनुज दल सकल तात ।।
तहँ जहँ जानकी त्रिजटा जाई । तथा कथन बिध ब्यथा बताई ।।
निबचन सुनि नलिनमुख मलीना । दुर्जय जात जीव दुखदीना ।।
निमेष मुंद निमद निसि चारी । दिरिस दरसहिं कबहिं दूषनारि ।।
दर्पकल छेदहु हरि दर्पिता । तड़पत तरन्ह दरसन सीता ।।
त्रसन धरन त्रस्त त्रयी देही । निगदन बदन भाचन बैदेही ।।
नयन निचयन निछल छर छाए । नाथ निछोह निछावर चाए ।।
नयन पट पथ जल कमल कामा । नमित नमसित नयनाभिरामा ।।
नीर नभ गमन गगन्हीं घाए । नमत नमत नत नयन निर्झाए ।।
त्रिपुरांतकारी दूषणारि त्राण त्रस वशन वानकी ।
त्रिजग जीवन कर प्राण वंदन जगत मोहिनी जानकी ।।
नव खंड शक्ति नव व्यूह भक्ति नव नवधिय अनंगना ।
त्रिपथ्य यामिनी चरण गामिनी गुणी गगन गंगना ।।
निकुंज कुंच निकर नयन रिता सीता धरून धर ।
नाम कीरत धारन अधर दिवारात दिव्यकर ।।
मंगलवार, 23 अक्टूबर, 2012
निसिकर काज कलेबर काला । दिवाकर मनि मय भयउ भाला ।।
दीप धवज देहि दीनदयाला । तप दीपित कर मूरति माला ।।
तरुमृग दल बल प्रबल प्रहारा । तिलछन निसिचर चरनिहिं चारा ।।
धरनउ धरतउ धूर्त रचाया । तंतुक जाल मंत्र मय माया ।।
धूत धुर निकट प्रकट पिसाचे । धनुधर कर नाराचहिं नाचे ।।
निसिचरी कर एक कपालंगा । दुजकर पर टार धर धारंगा ।।
धरु मरू धवनि गह गगन घोरा । तरुमृग देखि दहनु चहु ओरा ।।
तिलमिलहिं तबउ तिलछन तापा । दीर्घकेश तर धरनि धापा ।।
ततसुत सूल बिपुल धर धाए । दिसि दस उतर धर तीर घिराए ।।
धरु मारू तरस आए किलकाए । दंत किटकिट कर काए उठाए ।।
तर तारण तार तरणि धार धरणी आधार अवतरण ।
देह धूम्र रुचय दीधिति धृतय धूलि धर ध्वज मंडलम् ।।
तन तेज ताल तुंग भाल तुंग शिखर तूल तुंगिशा ।
दिव्य देवायुध धर देवायुस दिग विजय जय दस दिशा ।।
तारन तीर तंत्र जाल तर तूनीर निकाल ।
निकाट काट कर कपाल दल बल बहुफल भाल ।।
निकाटत धड़हिं बढ़उ बहुताई । निभ नीलाभ लाभ लिप्साई ।।
दसकंठ कंठ कटे न काटे । तबहिं त्रिभुवन बिभीषन ताके ।।
नाभिकुंड कीलहिं कीलाला । दुर्जय जिअत जबहिं दसभाला ।।
निर्भेदन बिभीषन दयाला । धनुधर धर तर दंष्ट्र कराला ।।
धुंधकार कर धन्वन धाहा । धकपक धक धगधागन गाहा ।।
दसदिसि दहन हवन अहवनाहिं । दिब्य बसन गह गहन गहनाहि ।।
नभस चाष चर नभ गज गामी । नभस्तल नभउ अंतरजामी ।।
नमस्कार कर धनुधर धारा । धनु धनवंतर दस कंधारा ।।
तीछन कर्मन बुद्धि बर धन्व कर धन्वाकर ।
तेज तेजनक धनुर्धर दसकंठ धनवंतर ।।
तान कान कर कोदंड टार तारण एकतीस ।
नवधातु विष दंत षंड नग फन फर सर सरिस ।। 24 अक्टू
बुधवार, 24 अक्टूबर, 2012
नाभिकुंड छद दीनदयाला । दसमौलि मूल हिन मुख माला ।।
दावन रावन दलमल दाला । दर्प न दर्पन कर न कपाला ।।
तरन एकतर हर देवहारा । तर अपर कर सिर षंड सारा ।।
नसन निसंसन नय नाराचे । धरहिं परहिं नटन निटिल नाचे ।।
धड़ धड़ धरपड़ धरनिहि धंसाए । तब तर कृतकर हर दुदितिआए ।।
धड़धड़ गड़गड़ धंतीगाड़ा । धरन धरंतर धरनि दरारा ।।
दोलहिं दिद्युतउ दोलत धरनिहि । दोलहिं तर सर सिंधु दहु दिसिहिं ।।
दिसिजय जय दिग्बल भुजदंडा । दिसिजय जयकार ब्रम्हांडा ।।
त्रिलोक भावन रक्ष रावण अयन आत्मन अभ्युदयम् ।
दिशा विजय कर विजय ध्वजा धर नय विजयाभ्युपायम् ।।
दशकंठ जित विजिगीषु गीत विजयापयितृ पूर्णोत्सवम् ।
दिग्बली विजय शील सिद्धय जयति जय जय विजयादशम ।।
दहन शील सारथि शरण दहन गर्भ केतन ।
दिशा दिशा दस दशानन दहर-दहर दहपटन ।।